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को तो बादशाह अकबर ने उसकी वीरता पर मुग्ध होकर अपना सेनापति ही बना लिया था । इन्हीं के प्रभाव से अकबर ने 1050 तीर्थंकर मूर्तियां जो उसका सेनापति सोने के लालच में सिरोही से लाया था वापिस दिला दी थीं जो बीकानेर में एक विशाल मंदिर बनाकर प्रतिष्ठापित की गईं । इन्हीं के कारण अकबर की जैनधर्म के प्रति रुचि जाग्नत हुई कि लोग उसे जैनधमी ही समझने लगे । उसने जैन मुनियों को सादर निमन्त्रित कर जैन धर्म की शिक्षा स्वीकार की । राव कल्याण ने अपने जैन मन्त्री संग्रामसिंह की देशभक्ति से प्रसन्न हो चातुर्मास में तेल के कोल्हू और कुम्हार के पजावे बन्द कर दिये । महाराज सूरसिंह का मन्त्री कर्मचन्द का पुत्र भागचन्द था ।
रावल जैसवाल द्वारा 1099 ई० में बसाए गए जैसलमेर के किले में हजारों वर्ष पुराने 8 जैन मंदिर हैं ।" महाराजा कर्ण ने 1283 में जैनाचार्य जनप्रभसूरि को जैसलमेर में चातुर्मास हेतु आमंत्रित कर ठाठ बाट से उनका स्वागत किया । 1416 में महाराजा लक्ष्मणसिंह के राज्यकाल में चिन्तामणि पार्श्वनाथ का मंदिर बना । 1436 में बयार सिंह के राज्य काल में सुपार्श्वनाथ का शाह हेमराज ने 1437 में तीर्थंकर संभवनाथ का मंदिर बनवाया है | जैसलमेर का शास्त्र भण्डार तो प्रसिद्ध है ही जिसकी प्रशंसा डॉ० राजेन्द्रप्रसाद तक ने की थी ।
अजमेर में 13 विशाल दि. जैन मंदिर हैं । अढ़ाई दिन का झोंपड़ा पहले जैन मन्दिर था जो अब मस्जिद में परिवर्तित है । ऋषभदेव का मन्दिर जो 25 वर्षों में बनकर तैयार हुआ बड़ा कलापूर्ण दर्शनीय है जिसकी प्रशंसा पं० जवाहरलाल नेहरू
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महावीर जयन्ती स्मारिका 76
ने भी की थी । महाराजा पृथ्वीराज प्रथम जैन गुरू अभयदेव का शिष्य था जिसने रणथम्भौर के जैन मन्दिर पर स्वर्ण कलश चढ़ाया था 13 अजयराज के उत्तराधिकारी अरणोराज ने एक विशाल जैन मन्दिर बनाने के लिए भूमि भेंट की । महाराजा पृथ्वीराज द्वितीय ने पार्श्वनाथ की पूजा खर्च के लिए भूमि दी 14 ग्ररणोराज के चाचा सोमेश्वर ने भी अपनी मनोकामना पूर्ति हेतु भ० पार्श्वनाथ की पूजा के लिए एक ग्राम भेंट किया। 5 मोहम्मद गोरी को हराने वाले पृथ्वीराज के दरबार में जिनपतिसूरी का शास्त्रार्थ हुआ था । इनका सेनापति चांदराय जैन था ।
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1727 में जयपुर बसाने वाले सवाई जयसिंह का इंजिनीयर मन्त्री विद्याधर जैन था जिसकी सलाह से इतने सुन्दर नगर का निर्माण हुआ जो भारत का पेरिस कहलाता है। दीवान रामचन्द्र छाबड़ा, राव कृपाराम पांड्या और विजयराम छाबड़ा ने कई विशाल मन्दिर बनवाए और हजारों ग्रंथ लिखाए । जयपुर में जैन दीवानो की एक लम्बी तालिका है जिसकी विस्तृत जानकारी हेतु म० ज० स्मा० 1962 पृष्ठ 246 से 253 देखिए ।
श्री अगरचन्द नाहटा : बीकानेर जैन लेख संग्रह तथा श्रोझा का बीकानेर राज्य का इतिहास ।
अयोध्याप्रसाद गोयलीय : राजपूताने के जैन वीर पृ० 273 ।
जैनिज्म इन राजस्थान पृ० 19 ।
संवत् 1169 का विजोलिया शिलालेख ।
ईपीग्राफिक इण्डिया वाल्यम 11 पेज 30-32 1
केवल पुरुष ही नहीं राजस्थान में कई वीरांगनाएं भी हुई हैं जिनमें से पन्नाधाय का जिक्र पहले आ चुका | पन्नाधाय उदयसिंह को बचाने के पश्चात् उसकी रक्षार्थ कई राजपूत सरदारों के पास गई किन्तु बनवीर के डर से किसी ने भी उसे शरण नहीं दी । अन्त में वह कुम्भलमेरू के जैन शासक प्रशाशाह के पास पहुँची जो पहले तो इनकार हो गया फिर अपनी माता द्वारा फटकारे
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