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________________ उदयसिंह का वध करने हेतु नंगी तलवार लेकर करणसिंह के पश्चात् महाराजा जगतसिंह महल में आया उस समय उदयसिंह की धाय पन्ना सिंहासनासीन हुए। इनका सेनापति भी उक्त ने किस प्रकार अपने पुत्र का बलिदान कर उदयसिंह अखैराज ही था। इन्होंने राजाज्ञा द्वारा अष्टमी की प्राणरक्षा की यह एक इतिहास प्रसिद्ध कथा चतुर्दशी को जीव वध रोक दिया था तथा वे जैनाहै । यह पन्ना धाय जैन थी। चार्यों का बड़ा सम्मान करते थे। राणासांगा के पुत्र उदयसिंह का प्रधानमन्त्री __ महाराणा राजसिंह के सेनापति दयालदास व सेनापति भारमल भी जैन था। महाराणा भी थे। राणा की जैन धर्म पर बड़ी गहरी श्रद्धा प्रतापसिंह का सेनापति प्रसिद्ध देशभक्त भामाशाह थी। इन्होंने 1692 में निम्न राजाज्ञा जारी तथा राजमन्त्री ताराचन्द थे जो भारमल के पुत्र की थी 6थे। महाराणा प्रताप ने 1518 ई. में प्रसिद्ध जैनाचार्य हीरविजयजी को मेवाड़ में जैनधर्म के प्रचार 1. जैन मंदिरों और जैन संस्थाओं की सीमा हेत उस समय ग्रामंत्रित किया जबकि वह स्वयं में कोई जीव वधन करे। यह जैनों का पूराना अकबर के साथ युद्धरत था ।। भामाशाह का त्याग हक है। . प्रसिद्ध है जिसने इतना द्रव्य महाराणा को उनकी 2. जो जीव वध के लिए छांट भी लिया गया हताश अवस्था में भेंट स्वरूप दिया था कि जिस से हो किन्तु यदि वह जैनियों के स्थान से गुजर जाय 12 वर्ष तक 25000 सैनिकों का व्यय चलाया तो अमर हो जायगा। फिर कोई उसे मार नहीं जा सकता था ।' हल्दी घाटी के प्रसिद्ध युद्ध में सकता। म 18-6-1576 को स्वयं भामाशाह भी लड़ा था । । 3. राजद्रोही, लुटेरे और जेल से भागे हुए ___ महाराणा प्रताप के पुत्र अमरसिंह का सेना- अपराधी को भी कोई राज कर्मचारी न पकड़े यदि पति भी भामाशाह का पुत्र जीवाशाह था । महा- वह जैनियों के उपाश्रय में शरण ले ले । राणा अमरसिंह भी प्रताप की ही भांति जैनधर्म प्रेमी 4. दान दी हुई भूमि और अनेक नगरों में था। सन् 1602 के एक शिलालेख के अनुसार बनाई हुई जैन संस्थाए कायम रहेंगी । इन्ही के इसने भी जैन मंदिरों को दान दिया था। मंत्री दयालदास ने राज नगर में बड़ा विशाल जैन अमरसिंह के पुत्र करणसिंह का सेनापति मंदिर बनवाया ।” जीवाशाह का पुत्र अखैराज था । इनके राज्य में मुगल सम्राट औरंगजेब के राज्यकाल में जब भी जैनधर्म खूब फूलता-फलता रहा। लोगों को जबर्दस्ती मुसलमान बनाया जाने लगा तो 1. प्रोग्रेस रिपोर्ट आफ आर्केलोजिकल सर्वे : वेस्टर्न सकिल 1907-8 पृ० 48-49 । 2. वाइस आफ अहिंसा 1963 पृष्ठ 153 । 3. प्रो० सी० वी० सेठ : जैनिज्म इन गुजरात पृष्ठ 273 । 4. प्रोग्रेस रिपोर्ट ऑफ आर्के० सर्वेः वे० सकिल 1907 । 5. राजपूताने का इतिहास खण्ड 3 पृष्ठ 787 6. जैनसिद्धांत भास्कर भाग 13 पृष्ठ 116-18 पर इसकी पूरी नकल प्रकाशित हुई है। 7. केसरियाजी तीर्थ का इतिहास पृष्ठ 27 । महावीर जयन्ती स्मारिका 76 2-73 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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