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________________ कि स्वयं रायपाल ने भी 22 वें तीर्थंकर नेमिनाथ जयतल्लदेवी ने 1265 ई० में जब देहली में दास की पूजा के लिए भेंट दी ।। वंशी नासिरुद्दीन का राज्य था, चित्तौड़ में 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का मन्दिर बनवाया ।। ___ महाराजा अल्हन देव जैनधर्म में श्रद्धा रखते थे। अपनी आध्यात्मिक सुख शांति के लिए इन्होंने महाराणा तेजसिंह के पुत्र समरसिंह ने जैनाप्राज्ञापत्र द्वारा अष्टमी, एकादशी और चतुर्दशी का चार्य अमितसिंह सूरि के उपदेश से प्रभावित होकर हर प्रकार का जीववध रोक दिया था और इस .. राजाज्ञा द्वारा अपने समस्त राज्य में जीवहिंसा आदेश के उल्लंघन करने तथा कराने वाले को कानून द्वारा रोक दी थी। 8 तीव्र दण्ड घोषित कर रखा था । 1172 ई० के शिलालेख से सिद्ध है कि अल्हनदेव ने भ० महावीर राजस्थान म्यूजियम अजमेर की 1921-22 के मंदिर को दान दिया । की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार महाराणा समरसिंह प्रल्हनदेव के पुत्र महाराजा कल्हनदेव ने भी र ने जैन मंदिरों के लिए भूमि भेंट की। समरसिंह जैन धर्म की प्रभावना के अनेक कार्य किये। 1164 के पुत्र तेजाकसिंह ने अपनी रानी रामदेवी और के शिलालेख से पता चला है कि इनकी माता पुत्र विजयसिंह के साथ 1306 ई० में प्रतापगढ में महारानी अन्हल्ला देवी ने भ. महावीर की निरन्तर जैन मूर्ति विराजमान की थी। पूजा के लिए भूमि दान दी थी । 4 महाराणा लाखा का प्रधानमंत्री तथा प्रधान 1160 ई० के शिलालेख के अनुसार महाराजा सेनापति रामदेव था जिसने अनेक जैन मंदिरों का कीर्तिपाल भ० महावीर की पूजा के लिए प्रति- जीर्णोद्धार कराया। वर्ष दान देता था । और इसके दोनों पुत्र राजकुमार लखनपाल तथा अभयपाल और रानी महाराणा हम्मीरसिंह का सेनापति जालसिंह महिबल देवी ने 16 वें तीर्थकर शांतिनाथ के पंच भी जैन था जिसने अलाउद्दीन खिलजी के दांत कल्याणक मनाने के लिए दान दिये । खट्ट कर दिये थे । महाराणा तेजसिंह जैनधर्मानुरागी थे। उन्होंने महाराणा कुम्भा ने जैन तीर्थ आबू पर जैन अनेक जैन मन्दिर बनवाये । इनकी पट्टरानी · यात्रियों से लिया जाने वाला कर माफ कर दिया 1-6 E. P. India Vol. XI pp. 37-41, 43-46, 43-47 and 66-70; 40-50, 66-70.. 7. (i) राजपूताने का इतिहास पृष्ठ 473 । (ii) राजपूताने के जैन वीर पृष्ठ 57 । राजपूताने का इतिहास पृष्ठ 477 । (i) डॉ० कैलाशचन्द्र जैन : 'History of Ranthambor' म० ज० स्म० जयपुर 1963 पष्ट 41-46. (ii) भंवरलाल नाहटा का रणथंभौर के सम्बन्ध में अनेकान्त वर्ष 8 पृष्ट 444 पर लेख (iii) महाकवि चन्द्रशेखर का हम्मीर हठ आदि । महावीर जयन्ती स्मारिका 76 2-72 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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