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________________ सांगानेर में रचित अज्ञात जैन महाकाव्य स्थूलभद्रगुरणमाला डॉ० सत्यव्रत गवर्नमेन्ट कालेज, श्रीगंगानगर खरतरगच्छीय सूरचन्द्र का स्थूलभद्रगुणमाला- है । सब मिलाकर काव्य संस्कृत महाकाव्य के ह्रासयुग की प्रतिनिधि रचना है । हरविजय, कप्फिरणाभ्युदय, आदि महाकाव्यों के समान स्थूलभद्रगुरणमाला में भी वर्णन की भित्ति पर महाकाव्य की अट्टालिका का निर्माण किया गया है । इसके उपलब्ध साढ़े पन्द्रह सर्गों में नन्दराज के महामन्त्री शकटार के पुत्र स्थूलभद्र तथा पाटलीपुत्र की वेश्या कोश्या के प्रणय की सुकुमार पृष्ठभूमि में मन्त्रिपुत्र की प्रव्रज्या का वर्णन करना कवि को अभीष्ट है । स्थूलभद्र की गुणावली का वर्णन तो यहां नाम मात्र को हुआ है । इस दृष्टि से काव्य की यह ग्राकर्षक शीर्षक इसके वरिणत विषय के अनुकूल नहीं हैं । शायद काव्य के अनुपलब्ध अंश में नायक के व्यक्तित्व के इस पक्ष को अधिक महत्व दिया गया हो । प्रस्तुत प्रति में साढ़े दस इच लम्बे तथा सवा चार इव चौड़े सत्ताईस पत्र हैं । प्रत्येक पत्र पर बाईस पंक्तियाँ और प्रत्येक पंक्ति में लगभग 55 अक्षर हैं । प्रति का प्रारम्भ सत्ताईसवें पद्य से होता है । पत्र के आकार को देखते हुई यह अनुमान सहज ही किया जा सकता है कि अनुपलब्ध दो पत्रों में 126 पद्य थे । यह प्रति मुझे महोपाध्याय विनयसागरजी के सत्प्रयत्न से प्राप्त हुई थी । प्रस्तुत विवेचन उसी हस्तप्रति पर आधारित है । Jain Education International कविपरिचय तथा रचना काल - प्रथम सर्ग की पुष्पिका के अनुसार स्थूलभद्रगुणमाला के रचयिता कविवर सूरचन्द्र खरतर - गच्छीय वीर कलश के शिष्य थे । जैनतत्वसार में यद्यपि उन्होंने अपना शाखा रूप सम्बन्ध जिनभद्रसूरि से स्थापित किया है, किन्तु अन्य साधनों से विदित होता है कि वे प्राचार्य जिनदत्त सूरि की परम्परा में थे' । सूरचन्द्र विश्रुत विद्वान् व प्रतिभा सम्पन्न कवि थे | पंचतीर्थस्तव उनकी विद्वत्तापूर्व प्रौढ़ रचना है, जिससे उन्होंने अपने चित्रकाव्य- कौशल का परिचय दिया है । संस्कृत के अतिरिक्त राजस्थानी में भी उनकी कई कृतियां उपलब्ध हैं । उनकी राजस्थानी रचना श्रृंगाररासमाला सम्वत् स्थूलभद्रगुणमाला की एक प्रति ( संख्या 27 ) केसरियानाथजी का मन्दिर, जोधपुर में स्थित ज्ञान भण्डार में विद्यमान है। दुर्भाग्यवश वह हस्तलेख अधूरा है । इसमें न केवल प्रथम दो पत्र प्राप्त हैं, अन्तिम से पूर्ववर्ती तीन पत्र भी नष्ट हो चुके हैं । पत्र संख्या देने में लिपिकार ने प्रमाद किया है । छठे के बाद वाले पत्र की संख्या प्राठ दी गई है, यद्यपि कथानुक्रम में कोई व्यवच्छेद नहीं १. द्रष्टव्य : श्री अगरचन्द नाहटा -- युगप्रधान जिनदत्तसूरि, पृ० ६६ महावीर जयन्ती स्मारिका 76 For Private & Personal Use Only 2-13 www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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