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________________ 2-12 मानवता की ज्योति जगादे श्री अनूपचन्द न्यायतीर्थ, अपने पथ से भटक गये हम अब हमको महावीर ! अति वीर ! सुसन्मति ! वर्द्धमान त्रिशला के नन्दन ! पतितोद्धारक परम पूज्य हे ! महामनीषी ! शत शत वन्दन || सन्मार्ग दिखादो | म ० ॥ राग द्वेष से मलिन क्रोध मान माया लोभ कषाय बढ़ी अन्तर में, फैल रहा अज्ञान अन्धेरा ॥ भला बुरा पहिचान सके ना अब विवेक का दीप जलादो | | ० || Jain Education International हुआ मन, ने घेरा । जयपुर सत्य अहिंसा स्याद्वाद ओ, अनेकान्त का गूंजे नारा । साम्य भाव से बने समुज्ज्वल, त्रसित क्षुब्ध जीवन की धारा ॥ आग्रह छोड़ समन्वय करल सबके प्रति सम्मान सिखादो ||म० ॥ रहीं निरन्तर, निश्चित कारण । बढ़े दिन दूना, कष्ट निवारण || इच्छाएँ बढ़ यही दुःख का आशा गर्त्त : कैसे होवे परिग्रह की ममता को तज दें संग्रह की प्रादत छुड़वादो | म ० ॥ राष्ट्र विरोधी मनोभावना, नहीं हृदय में घर कर जावे । द्वेष ईर्ष्या और कलुषता, को डिगा न मानवता पावे || अनुशासन कर्त्तव्यनिष्ठता सर्वोपरि हो पाठ पढ़ा दो ||म० ।। For Private & Personal Use Only महावीर जयन्ती स्मारिका 76 by Vig www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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