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________________ 1-168 अहिंसा के अंकुर अधःपतन की ओर अग्रसर, अब का भारत, डगर डगर कर रहीं जहाँ, कुठाएं रोदन, सही गति दे कौन प्राज, विपरीत प्रगति कोकुलाए हैं, वर्तमान के, व्याकुल लोचन । यहाँ भोग के भारत का सिर्फ राग गा बैरागी वेश @ श्री शर्मनलाल 'सरस' सकरार (झाँसी) अतः प्रहिंसक बढ़ो, अवनि अवलम्ब चाहती, विलम्ब के लिए, वक्त कुछ शेष नहीं है, बतलादो जो वैज्ञानिक, यंत्रो पर फूलेभारत केवल भौतिकवादी देश नहीं है । लिए नहीं, जन्मा करता जन, अध्यात्म वाद से, चिर नाता है, रास नहीं रचते हैं ये कर ? बनाना, भी आता है । Jain Education International यह क्या कहते आप ? बुजदिल होने का इसमें प्रगट नहीं होने देती, दुर्बल होने का इसमें, खड़ी हुई बुनियाद प्राज, जिसकी विराग पर, बतलादूं यह किस कृपा की, कोर किरण है, हिंसा की शक्ति ने, जिससे हार मानली, परम हिंसा इस सुदेश का प्रथम चरण है । अहिंसा में कायरता, इतिहास छिपा है, यह पूर्ण वीरताआभास दिखा है। लेकिन यह भ्रम है धोका है प्रात्महीनता, लगता इसकी गहराई का ज्ञान नहीं है, एक चोट हिंसक हो सकता, यहां अहिंसक - कायरता के लिए कोई स्थान नहीं है । वह हिंसा है क्षम्य देश के प्रति होती जो, जन समाज के लिए, कदम कब रुक सकता है ! कभी चनों के धोके में, मत मिर्च चबाना ? स्व रक्षा के लिए, हाथ हर उठ सकता है । बंधु-बंर का अगर अन्त करना है तुमको, कभी आग से आग भूल कर नहीं बुझावो, हिंसा हो जायेगी पानी, तुम्हें देख कर - 'सरस' अहिंसा के अंकुर मन में उपजाओ । For Private & Personal Use Only महावीर जयन्ती स्मारिका 76 www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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