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________________ स्त्रियां भी यदि ग्रन्थ रचना करती तो वे भी लिख महावीर ने उसके हाथ से आहार ग्रहण किया देतीं कि और वह भगवान् महावीर के संघ में सर्वश्रेष्ठ आर्यिका हो गई । पुरुषो विपदां खानिः पुमान् नरकपद्धतिः । पुरुष: पापानां मूलं पुमान् प्रत्यक्ष राक्षसः ॥ कुछ जैन ग्रन्थकारों ने भी स्त्रियों के प्रति अत्यन्त कटु और अशोभन बातें लिख दी हैं । कहीं उन्हें विष बेल लिखा है तो कहीं जहरीली नागिन लिख डाला है ! कहीं विष बुझी कटारी लिखा है तो कहीं दुर्गुणों की खान लिख दिया ! मानो इसी के उत्तर-स्वरूप एक वर्तमान कवि ने निम्नलिखित पंक्तियां लिखी हैं--- वीर, बुद्ध अरु राम कृष्ण में अनुपम ज्ञानी । तिलक, गोखले, गांधी से श्रद्भुत गुण खानी ॥ पुरुष जाति है गर्व कर रही जिनके ऊपर । नारी जाति थी प्रथम शिक्षिका उनकी भू पर ॥ पकड़ पकड़ उंगली हमने चलना सिखलाया । मधुर बोलना और प्रेम करना सिखलाया ॥ राजपूतिनी वेष धार मरना सिखलाया । व्याप्त हमारी हुई स्वर्ग अरु भू पर माया ॥ पुरुष वर्ग खेला गोदी में सतत हमारी । भले बना हो सम्प्रति हम पर अत्याचारी ॥ किन्तु यही सन्तोष हंटीं नहि हम निज प्रण से । पुरुष जाति क्या उॠरण हो सकेगी इस ॠरण से ॥ भगवान् महावीर के शासन में महिलाओं के लिए बहुत उच्च स्थान है । महावीर स्वामी ने स्वयं अनेक महिलाओं का उद्धार किया था । चन्दना सती को एक विद्याधर उठा ले गया था, वहां से वह भीलों के पंजे में फंस गई। जब वह जैसे-तैसे छूट कर आई तो स्वार्थी समाज ने उसे शंका की दृष्टि से देखा । एक जगह उसे दासी के स्थान पर दीनतापूर्ण स्थान मिला। उसे सब तिरस्कृत किये हुए थे। ऐसी स्थिति में भी भगवान् 1-106 Jain Education International इन सब बातों से सिद्ध है कि जैन धर्म में महिलाओं को उतना ही उच्च स्थान प्राप्त है जितना कि पुरुषों को । वर्ण और गोत्र परिवर्तन कुछ लोगों की ऐसी धारणा है कि जाति भले ही बदल जाय मगर वर्ण परिवर्तन नहीं हो सकता । उनकी यह भूल है, क्यों कि वर्ण परिवर्तन हुए बिना वर्ण की उत्पत्ति एवं उसकी व्यवस्था भी नहीं बन सकती । जिस ब्राह्मण वर्ण को सर्वोच्च माना गया है उसकी उत्पत्ति पर तनिक विचार कीजिये, तो मालूम होगा कि वह तीनों वर्णों के व्यक्तियों में से उत्पन्न हुआ है । श्रादिपुराण में लिखा है कि जब भरत राजा ने ब्राह्मण वर्ण स्थापित करने का विचार किया था तब राजाओं को प्राज्ञा दी थी कि: सदाचारैनिजैरिष्टैरनुजीविभिरन्किताः । श्रद्यास्मदुत्सवे यूयमायातेति प्रथक् प्रथक् । ( पर्व ३८-१० ) अर्थात् श्राप लोग अपने सदाचारी इष्ट मित्रों सहित तथा नौकर चाकरों को लेकर आज हमारे उत्सव में आओ । इस प्रकार भरत चक्रवर्ती ने राजा प्रजा, नौकर चाकरों को बुलाया था, उनमें क्षत्री, वैश्य और शूद्र सभी वर्ग के लोग थे । उनमें से जो लोग हरे अंकुर को मर्दन करते हुए राज-महल में पहुंच गये उन्हें तो चक्रवर्ती ने निकाल दिया और जो लोग हरे घास का मर्दन न करके बाहर रहे या लौट कर वापिस जाने लगे उन्हें रोककर विधिवत् ब्राह्मण बना दिया। इस प्रकार तीन खड़े हो For Private & Personal Use Only महावीर जयन्ती स्मारिका 76 www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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