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________________ प्र एक स्थान से दूसरे स्थान को विहार करते उन सारी बातों का पूर्ण सिलसिलेवार उल्लेख हुए अन्त में महावीर इसी बिहार प्रदेश की पावा करना संभव नहीं है तो भी उसमें से कुछ नामक नगरी में पाये और वहीं कार्तिक कृष्णा आवश्यक तथ्यों पर यहाँ विचार किया जा रहा प्रमावस्या के दिन शेष 4 अधातिया कर्मों है जो कि आज के भौतिकवाद से आक्रांत अशान्त को काट कर मोक्ष पधारे । अब जो सामाजिक जीवन में नये मूल्यों की संस्थापना के कभी भी इस संसार में लौटकर नहीं आवेंगे और संदर्भ में अभी भी अपनी पूर्ण महत्ता रखते हुये मोक्ष में ही जो अनन्त चतुष्टय रूप महालक्ष्मी का चिरनवीन बने हुये हैं। भोग करते रहेंगे वे धर्मतीर्थ के प्रवर्तक भगवान् भ० महावीर की क्रांति एक सर्वोदयवादी क्रांति महावीर आज हमारे सामने नहीं हैं । किन्तु शिष्य थी। जिनमें व्यक्ति व्यक्ति का, जन-जन का अभ्युदय प्रशिष्य परम्परा से श्रुति और कृति के रूप में । प्रागत उनकी दिव्य-भारती आज भी अस्तित्व समाहित था । अपनी सर्वोदय क्रांति के दौरान अादिचरण में उन्होंने अहिंसा पर सर्वाधिक जोर दिया। उन्होंने बतलाया कि संसार में सभी प्राणी भ० महावीर ने अपने तीस वर्ष के लम्बे देशना- जीना चाहते हैं, सुख की सभी इच्छा करते हैं, मरना काल के दौरान एक सच्चे लोकशिक्षक के रूप में कोई भी पसन्द नहीं करता, सभी जीव दुःख से सांसारिक दुःखों की ज्वाला से झुलसते हुये जीवों घबराते हैं । अतः किसी भी जीव की प्रमादवश को जो उपदेश दिया वही उपदेश यद्यपि उनसे हिंसा न करो । जो कार्य तुम दूसरों के द्वारा अपने पूर्व तीर्थङ्कर आदिनाथ से लेकर तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ प्रति करवाना नापसन्द करते हो वैसा कार्य तुम तक 23 तीर्थकर दे चुके थे । किन्तु महावीर के दूसरों के प्रति कभी भी मत करो । जैसी प्रात्मा युग में उनसे करीब 275 वर्ष पूर्व हुए तीर्थङ्कर तुम्हारी है वैसी ही अन्य सभी दूसरे जीवों की है । पार्श्वनाथ के उपदेशों की आवश्यकता इसलिए कुछ अतः किसी भी जीव की हिंसा मत करो, किसी मिल-सी नजर आने लगी थी, क्योंकि 200- भी जीव को मत सतायो । इतना ही नहीं उन्होंने 250 वर्षों के एक लम्बे समय के परिवर्तन के बताया कि मन, वचन तथा शरीर के द्वारा भी साथ-साथ तात्कालिक परिस्थितियों में भी बहुत किसी भी प्राणी की हिंसा के करने-कराने या हिंसा बड़ा परिवर्तन आ गया था। समाज के अन्दर का समर्थन करने का विचार भी मन में मत अनेकों तरह की अर्थहीन विसंगतियाँ व्याप्त हो गई लागो । यही पूर्ण अहिंसा है। प्रत्येक व्यक्ति में थीं। अतः महावीर ने स्वयुगीन युगबोध को देखा- पूर्ण अहिंसक होने की क्षमता विद्यमान है । हरेक परखा और अपने कुछ पूर्व हुए तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ व्यक्ति पूर्ण अहिंसक हो सकता है । और यदि कोई ये उपदेशों की ही तात्कालिक परिस्थितियों मानव पूर्ण अहिंसक हो जाता है तो वह प्रात्मा से के संदर्भ में एक सर्वश्रेष्ठ, स्वतन्त्र और अभिनूतन परमात्मा बन सकता है। अनन्त सुख और शांति व्याख्या समाज के सामने प्रस्तुत की जो इतनी के महा पारावार में हिलोरें ले सकता है। पूर्ण अहिंलोकप्रिय हुई कि आज भी जिसकी पूर्णरूपेण वही सक बन जाने का सफल प्रयोग सबसे पहले उन्होंने प्रासंगिकता बनी हुई है जो आज से 2500 वर्ष पूर्व स्वयं के ऊपर करके दिखलाया। वर्तमान विश्वथी। महावीर ने यद्यपि मानव की सर्वोच्च उन्नति के समाज के अन्दर जो अशांति और असन्तोष लिये उसके सामाजिक एवं आर्थिक दोनों क्षेत्रों में नजर आ रहा है, जो विषमतायें नजर आ रही पूर्ण क्रांति का उन्मेष किया था। स्थानाभाव में हैं उन सभी का मुख्य कारण है हिंसा । यदि महावीर जयन्ती स्मारिका 76 • 1-99 के दि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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