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सन् 1974 नवम्बर में भगवान महावीर की पचीसवीं निर्वाण शताब्दी का कार्यकम प्रारम्भ हुआ । अब 1975 का नवम्बर सामने है । एक वर्ष का समय समाप्ति पर है, किन्तु कार्यक्रम सम्पन्नता नहीं चाहता है। जिस वार्षिक कार्यक्रम की पृष्ठभूमि तैयार करने में कई वर्षों का समय लगा उस कार्यक्रम की सम्पूर्ति एक वर्ष में कैसे हो सकती है ? हमारे सामने करणीय काम इतने हैं कि जब तक वे पूरे नहीं होते हैं, हम निर्वाण-शताब्दी का समापन नहीं कर सकते ।
पिछले वर्ष भगवान महावीर का नाम अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज तक एक दिव्य पुरुष के रूप में उभर आया है । यह शताब्दी वर्ष की विशेष उपलब्धि है। इसमें हमारे देश की केन्द्र और राज्य सरकारों तथा जैन और अजैन संस्थानों ने खुलकर भाग लिया । भगवान महावीर को महावीर के रूप में प्रस्तुत करने में इन सबका योग रहा है ।
राजस्थान सरकार और राजस्थान की जनता ने भगवान महावीर के प्रति जैसी श्रद्धांजलि अर्पित की है, वह अन्यान्य राज्यों के लिए भी अनुकरणीय है। राजस्थान प्रान्तीय महावीर-निर्वाण महासमिति अपने दायित्व के प्रति काफी जागरूक रही है । वह स्मारिका के रूप में एक और श्रद्धांजलि समर्पित करना चाहती है। स्मारिका भगवान महावीर के दर्शन को स्मति में लाने का माध्यम बने, इस दृष्टि से उसमें विशेष सामग्री का समाचयन आवश्यक है।
राजस्थान सरकार, निर्वाण-समितियों और जनता द्वारा किए गए सभी कार्यों की अवगति स्मारिका के माध्यम से देश की जनता तक पहुँच सकती है । भगवान महावीर जीवन के प्रशस्तीकरण में प्रेरणास्रोत हैं । उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है-उनके दर्शन को जीवन-व्यवहार में उतारना । निरिण-समितियां भी इस विषय में जागरूक रहकर अपने देश के नैतिक और चारित्रिक स्तर को उन्नत बनाने के लिए प्रयत्नशील रहेंगी, ऐसा विश्वास है।
प्राचार्य तुलसी
ग्रीन-हाउस, सी-स्कीम, जयपुर (राजस्थान) 16 अक्टूबर 1975
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