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गोतम, त्याग प्रमाद ।
-डॉ. मनोहर शर्मा
पड़सी पीलो पान सो, यो तन होसी रेत । गोतम, नां दिन एक-सा, मत प्रमाद कर, चेत ॥1 ।। प्रोस-बूंद कुस-पात पर, बिलसै थोड़ी बार। गोतम, नर री देह त्यू', उठ, प्रमाद ने टाल ।। 2 ॥ बिधन भरघो संसार यो, मेट आगला कर्म । गोतम, थोड़ो जीवणो, तज प्रमाद, सुण धर्म ।। 3 ।। दुरलभ मिनखा-देह या, घणा करम-फल गूढ । गोतम, त्याग प्रमाद तू, जीतब हारै मूढ ॥4॥ प्राणी निज निज करम सू, भरमै जग-जंजाल । गोतम, ग्यान बिचार मन. अर प्रमाद ने टाल ॥ 5 ॥ मिनख-जमारो लाभ के, प्रारजकुल ना होय ।। गोतम, त्याग प्रमाद तू, मूढ गया जग खोय ॥ 6 ॥ तन जीरण ढीलो भयो, केस भया सिर सेत । गोतम, त्याग प्रमाद तू, अब तेरो के हेत ॥ 7 ॥ जल में बस जल सू बिलग, फूल कमल रो देख । गोतम, त्याग प्रमाद तू, तोड़ मोह जग-रेख ।। 8 ।। धन, दारा, सुत त्याग कर, प्रणागार पद पाय । गोतम, त्याग प्रमाद तू, उलटी कर मत खाय ।। 9 ।। मत भटक अब रेत में, करयो समंदर पार । गोतम. त्याग प्रमाद त, जीत लियो संसार ॥10॥ गुण कर वाणी ग्यान री, गोतम जाण्यो भेद । सिद्ध-रूप समरथ भयो, राग-द्वस ने छेद ॥ 11 ॥
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