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इच्छाएं बढ़ रहीं, रोक दो
आशा तृष्णा दूर भगा दों सदा सुखी अपने को मानो आपस में करके बटवारा ॥४॥
"है समान अधिकार सभी को ऊच नीच का भेद हटायो कोई छोटा बड़ा नहीं है
सबको अपने गले लगायो" विश्व-मैत्री पाठ पढायो इस ही में सम्मान तुम्हारा ॥५॥
रूढि अंध विश्वास मिटाकर अब विवेक का दीप जला लो सम्यक् श्रद्धा ज्ञान आचरण
जीवन में पूरा अपना लो सब धर्मों का करो समादर इस ही में कल्याण तुम्हारा ॥६॥
'प्रात्म प्रशंसा पर निंदा तज निज स्वभाव से नाता जोड़ो मोह ममत्व त्यागकर अनुपम
परपरिणति से मुंह को मोड़ो अविनाशी पद पायो इससे मिट जावे संसार तुम्हारा । प्राणी का उद्धार करेगा महावीर संदेश तुम्हारा ।।
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