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चरित्र पर भी अच्छा प्रकाश डाला गया है। इस काव्य लिखा गया है । महावीर के चरित्र, व्यक्तित्व काव्य में आधुनिक नारीचिन्तन परिलक्षित होता है और सन्देशों को लेकर हिन्दी में सहस्राधिक बनती कठपुतली पति की,
कविताएं लिखी गयी हैं । आवश्यकता इस बात की जिस दिन कर होते पीले ।
है कि इन सबको खोज करके, संकलित सम्पादित पति इच्छा पर ही निर्भर,
करके, महावीर-निर्वाण पच्चीस सौ वर्ष के अवसर हो जाते स्वप्न रंगीले ।।
पर भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा ग्रन्थाकार रूप में केवल विलास सामग्री,
प्रकाशित कर दिया जाय ताकि एक ही ही मानी जाती ललना।
स्थान पर सरलता-सुविधापूर्वक समस्त कविताओं गृहिणी को घर में लाकर,
का प्रास्वादन, अध्ययन-अनुशीलन किया जा सके । वे समझा करते चेरी ।।
सागर के ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान 'निर्मम' कब नारी अपने खोये,
ने 'हे निग्रंन्थ' शीर्षक से निर्वाण-पर्व (दीपावली स्वत्वों को प्राप्त करेगी।
सन् 1970) पर अपनी काव्य-पुस्तिका प्रकाशित कब वह निज जीवन पुस्तक;
की है। इसमें मुख्यतया महावीर के व्यक्तित्व, का नव अध्याय रचेगी।
सांस्कृतिक स्वरूप और सन्देशों का काव्यात्मक महावीर-चरित में नारी की भोर सम्यक् रूप प्रतिपादन किया गया है । सुभाव ये हैं :में दृष्टिपात करने का श्रेय 'सुधेश' को है । आधुनिक
हे मुक्तिपुरी के निर्देशक, सास्यवादी चिन्तन भी महावीर-विचारणा को
हम अज्ञात बन्धों के, पाश में, प्रभावित करता दिखाई देता है :
बंधकर रह गये हैं। पूजीपति इनके आश्रित,
बिना नाविक के, नौका पर, रह सुख की निद्रा सोते।
सवार, धारा में बह गये हैं। पर श्रमिक कृषक-गण,
अब, इस कष्ट से, समस्या से, जीवन भर दुख की गठरी ढोते ॥
गति से, इस परिस्थिति से । इस काव्य में आधुनिकता का अंश दिखायी देता
प्रात्मविमोहन के आकर्षण से - है। समता, करुणा, स्नेह तथा समवेदना के स्वरों
मुक्ति तुम्हारी ही, कला पर, है, निर्भरा। को प्राबल्य मिला है। शैली परम प्रोजस्विनी पौर परमेष्ठी दास 'न्यायतीर्थ' ने 'महावीर-संदेश' भाषा सुगम्य है। एक आधुनिक सिद्धान्त-पापी से को काव्य की इन लड़ियों में पिरोया है : घृणा करी-को महावीर अपने सिद्धान्तों में स्थान
प्रेम भाव जग में फैला दो, प्रदान करते हैं :
. करो सत्य का नित व्यवहार । दुष्पाप अवश्य घरिणत है,
दुरभिमान को त्याग अहिन्सक, पर घृणित नहीं है पापी।
बनो यही जीवन का सार ॥ यदि सद्व्यवहार करो वह,
बन उदार भव त्याग धर्म, बन सकता पुण्य प्रतापी ।।
फैला दो अपना देश विदेश । महावीर पर लिखित खण्ड तथा महाकाव्यों में
'दास' इसे तुम भूल न जाना, युगीन चेतना प्रतिफलित होती दिखायी देती है।
है यह महावीर सन्देश ।। (ब) स्फुट काव्य में महावीर :
प्रतिभावान कवि वीरेन्द्र कुमार ने अपनी भगवान महावीर पर विपुल मात्रा में स्फुट सुन्दर तथा सजीव कविता 'वीर वन्दना' में
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