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'जम्बूस्वामी चरित्र' की रचना की थी। यह चरित्र (क) प्रबन्ध काव्य में महावीर : भाषा तथा भाव दोनों ही दृष्टियों से श्रेष्ठ है। सन् 1961 में अनूप शर्मा ने 'वर्द्धमान' नामक जम्बू स्वामी जैनों के अंतिम केवली थे। महाकाव्य लिखा जिसे भारत की श्रेष्ठ संस्था
जिनहर्ष ने सम्वत् 1724 में भगवान महावीर भारतीय ज्ञानपीठ ने प्रकाशित किया था । प्रामुख के निष्णात भक्त महाराजा श्रेणिक के चरित्र पर रूप में प्रसिद्ध विद्वान् श्री लक्ष्मीचन्द्र जैन ने विस्तृत • 'श्रेणिक चरित्र' नामक काव्य लिखा।
तथा सार-गभित भूमिका लिखी है। प्रस्तावना के __ लक्ष्मीवल्लभ ने 18वीं शताब्दी के द्वितीय रूप में महावीर का संक्षिप्त जीवन-वृत्त दिया गया चरण में 96 पद्यों में 'महावीर गौतम स्वामी छंद'
है। सम्पूर्ण काव्य सत्रह सगों में विभाजित है। नामक काव्य लिखा जिसमें महावीर स्वामी मोर
प्रारम्भिक सात सर्ग पृष्ठ-भूमि का कार्य करते हैं। उनके प्रधान गणधर गौतम की स्तुति गायी
अष्टम सर्ग में महावीर का जन्म होता है । संस्कृत गयी है।
के प्राचीन महाकाव्यों की शास्त्रीय शैली का
कुशलतापूर्वक निर्वाह किया गया है । 'हरिऔध' के प्राधनिक साहित्य में महावीर :
"प्रियप्रवास' का स्पष्ट प्रभाष लक्षित होता है । प्राधुनिक हिन्दी साहित्य में भगवान महावीर महाराज सिद्धार्थ मोर उनकी धर्मपत्नी त्रिशला के स्वामी को प्रमुख प्रतिपाद्य विषय बनाकर विपुल गृहस्थ-जीवन, त्रिशला के गर्भ से महावीर का जन्म, साहित्य लिखा गया है । यह दोनों विधाओं में उप- उनकी बाल्यावस्था, गृह-त्याग, विकट तपस्या, ज्ञान लब्ध है:
प्राप्ति, धर्मोपदेश, वीर-वन्दना, महापरिनिर्वाण (क) पद्य-साहित्य और
मादि का विशद काव्यात्मक वर्णन मिलता है। (ख) गद्य-साहित्य
छन्दों में वंशस्थ वृत्त का प्राधान्य है। शास्त रस भगवान महावीर स्वामी के जीवन-चरित्र को को प्रमुखता मिली है। ऋतनों और प्रकृति के लेकर हिन्दी में निम्न प्रकार की रचनाएं लिखी मनोरम चित्र मिलते हैं। महावीर के चरित्र के गयी हैं :
विकास को रेखामों में गहरा रंग दिया गया है। वे (क) प्रबन्ध-काव्य
चिन्तक और दयालु हैं। संस्कृत-गर्मित शुद्ध खड़ी (ख) स्कुट-काव्य
बोली का सर्वत्र प्रयोग मिलता है । रानी त्रिशला का (ग) प्रशस्ति-काव्य
मालंकारिक रूप चित्रण इस प्रकार है जिससे भाषा (घ) लोक-काव्य और .
शैली की भी बानगी मिलती है: (ङ) अनुवाद-काव्य ।
प्रभा शरच्चन्द्र-मरीचि-तुल्य है, इनका विस्तृत प्रतिपादन अधोरूपेण है।
बिना शरत्कंज-समान नेत्र की। काव्य के धीरोदात्त नायक : वर्तमान :
. शुभा शरद-हंस-समा सुचाल है, प्राचीन तथा अर्वाचीन हिन्दी-काव्य में भगवान विशाल तेरी छवि वाम-लोचने ।। महावीर स्वामी को श्रेष्ठ काव्य-पुरुष के रूप में इस कृति में महाकाव्य के शास्त्रीय लक्षणों का चित्रित किया गया है। हमारे यहां संस्कृत के सफलतापूर्वक निर्वाह किया गया है। यह काव्य प्राचार्यों ने काव्य में जो चार प्रकार के नायक मूलतः भक्ति तथा वैराग्य के भावों का संवाही हैं। निरूपित किए हैं, उनमें महावीर धीरोदात नायक कवि स्वाभाविक रूप में समन्वयवादी है। इसीलिए की समस्त विशेषताओं से भली-भांति प्रतिपादित उसने दिगम्बर तथा श्वेताम्बर मान्यतामों को किये गये हैं।
सुन्दरतापूर्वक संयुक्त कर दिया है। अनूप शर्मा ने
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