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दिव्य-वाणी
एनो य मरइ जीवो, एप्रो य उववज्जइ । एयास जाइ मरणं, एप्रो सिज्झइ पोरओ॥
अर्थ-यह जीव अकेला ही मरता है और अकेला ही उत्पन्न होता है । उसके अकेले की ही मृत्यु होती है अर्थात् दूसरा कोई साथ नहीं जाता। यह जीव अकेला ही कर्मरूपी मैल को नष्ट कर एवं शुद्ध हो सिद्ध पद को अर्थात् मुक्ति को प्राप्त करता है।
-प्राचार्य श्री वट्टकर स्वामी
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