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अमृतवारणी
-श्री रमेशचन्द्र जैन बाझल सर. हु. संस्कृत महाविद्यालय, जवरीबाग, नसिया, इन्दौर
महावीर की अमृतवाणी, समझें प्रोर समझाना है। पच्चीस सौ वां निर्वाणोत्सव, सार्थक हमें बनाना है।
सुख के खातिर माज जगत् ने, भौतिकता है अपनाई । हिंसक कर्म करें विन सोचे,
परिणति कैसी है छाई ॥ भौतिकता में सुख समझें, यह भ्रम में पड़ा जमाना है। महावीर की अमृतवाणी, समझ पोर समझाना है ।
ज्यों ज्यों इच्छा पूर्ण करें, त्यों त्यों ही बढ़ती जायें । इच्छानों की तप्ति हेत,
निज समब अमूल्य गमायें ।। भोगों से सुख नहीं मिले, यह सम्यक् बात बताना है। महावीर की अमृतवाणी, समझ मोर समझाना है ।
सत्य अहिंसा को अपनायें, छोड़े व्यर्थ के प्राडंबर । श्रद्धा, ज्ञान, चरित्र हो सम्यक
करें शुभाशुभ का संवर ॥ वीतरागमय पथ मानव को हमको पुनः दिखाना है । महावीर की अमृतवाणी समझे और समझाना है।
रहे परस्पर भ्रातृ भावना, जीवन सुखमय रहे सदा । धर्मोन्नति के पथ पर बढ़वें,
भय व्याधि नहीं होय कदा ॥ महावीर के सिद्धान्तों से, स्वर्ग धरा पर लाना है। महावीर की अमृतवाणी समझे और समझाषा है।
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