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उल्लेख है । प्रायाग पटों पर चक्र द्वारा या मानव रूप में तीर्थंकरों को बनाया जाता था। चित्र-2
अंकन है। बालक नीचे खड़ा है। दूसरे हाथ में प्राम्रगुच्छ पकड़े हैं। ऊपर तीर्थकर यद्यपि नहीं हैं किन्तु जिस प्रकार जैन प्रस्तर प्रतिमाओं पर अम्बिका पाते हैं उसी प्रकार यहां भी बनाया गया है । इस एकमात्र स्वाँकन के पश्चात् पीतल की धातु जैन प्रतिमाएं आती हैं जो संख्या में तेईस हैं। ये लेखयुत एवं लेखरहित दोनों ही प्रकार की हैं। ये सभी मध्यकाल की हैं। एक पृष्ठलल पर अभिलिखित सं. 1216 की चौबीसी जिसे हरिद्वार से लाया गया था। इसको अाषाढ़ की नवमी को संस्थापित किया गया था। इसे ब्राह्मण देवता समझ कर नित्य हर की पैड़ी पर पूजा जाता था। मूल नायक इसके ऋषभदेव हैं ! देखें चित्र-2
इसके बाद मनका (Bead) जिस पर त्रिरत्न बना है यह मूल्यवान पत्थर लगभग 5 सूत प्राकार का है। तदुपरान्त श्री वत्स से युक्त किन्तु मुख, हाथ एवं पैर रहित धड़ मिट्टी का बना है। इसके अतिरिक्त “सुपार्श्वनाथ' से अभिलिखित गुप्तलिपि, में लखीमपुर खीरी से प्राप्त ध्यानस्थ पद्मासीन छः इंच आकार में मिट्टी की बनी कृति है।
इस पर मांगलिक चिह्न एवं अभिलेख भी पाते
हैं । संग्रह की मर्हन प्रतिमायों में आदि, चन्द्र, नस्तर पर जैन-प्रतिमाओं का अंकन विस्तृत
वासु, सुव्रत, विमल, अजित, श्रेयांस, शीतल, नेमि है। इन्हें प्रतीक या मानव रूप में सुरचित किया
पार्श्व एवं महावीर की प्रतिमाए हैं । है। जैन प्रतिमाए कुषाण, गुप्त, मध्य एवं आधुनिक काल की हैं । वेदिका स्तम्भ, तोरण, ये सभी विग्रह कायोत्सर्ग या पद्मासीन दिगम्बर उष्णीष, फुल्लो पर अभिलेख कमल, स्वस्तिक, या सवस्त्र बनाये गये हैं । इन पर लेख भी पाते हैं श्रीवत्स, शंख आदि को शिल्पकार ने स्थान दिया कितनी ही प्रतिमाएं लेख रहित भी हैं। मथुरा है। ऋषभदेव का वैराग्य नीलाञ्जना का नृत्यपट्ट से प्राप्त प्रतिमाएं लाल चितीदार पत्थर की हैं । तथा महावीर का गांकन विशेष रूप से शेष काले, श्वेत संगमरमर भूरे, स्लेटी, मटीले या दि
1. जोशी डा. नीलकण्ठ पुरुषोत्तम, मेटल इमजेज इन दो कलेक्शन म्यू. बुले. पृ. 9. 2. हीरानन्द शास्त्री, सम रिसेन्टली एडेड स्कल्चर इन प्राविशियल म्यू. लखनऊ, आकि.सर्वे 1922 पृ.24
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