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उनसे दूर रहती थीं और श्रेष्ठ गंधहस्ती के . हुप्रा हो, उसके फटे हुए मंश से रूई बाहर निकल समान, किसी क्षेत्र में उनके प्रविष्ट होते ही सामान्य माई हो उसके समान कोमल सुलझे हुए, स्वच्छ हाथियों के समान पर चक्र, दुभिक्ष, महामारी प्रादि और चमकीले या पतले-सूक्ष्म, लक्षणयुक्त सुगंधित दुरितों का विनाश हो जाता था। वे प्राणों को सुन्दर, भुजमोचकरत्न भृग कोट, नील-विकार, हरण करने में रसिक और उपद्रवों के करने वालों कज्जल और अत्यन्त हर्षित भौंरे के समान काले को भी भयभीत नहीं करते थे अथवा सभी प्राणियों और लटों के समूह से एकत्रित धुधराले छल्लेके भय को हरण करने वाली दया के धारकाथे- दार बाल (प्रदक्षिणावर्त) (शिर पर) थे। केश के निर्भयता के दाता थे। चक्षु के समान श्रुत ज्ञान समीप में केश के उत्पत्ति के स्थान पर की त्वचा के देने वाले थे। सम्यक् दर्शन प्रादि मोक्ष मार्ग द.डिम के फूल के समान प्रभायुक्त थी। लाल के प्रदाता थे। उपद्रव से रहित स्थान के दायक थे सोने के समान (वर्ण) निर्मल थी और उत्तम तेल और जीवन (अमरता रूप भाव प्राण के) दानी से सिञ्चित सी थी (अर्थात) चिकनाई ‘से युक्त थे। वे दीपक के समान समस्त वस्तूमों के प्रकाशक चमकीली थी। अथवा द्वीप के समान संसार सागर में नाना प्रकार उनका उत्तमांग धन, भरा हुआ और छत्राकार के दुखों की लहरों के थपेड़ों से पीड़ित व्यक्तियों था। ललाट प्राधे चांद के समान, घाव आदि के के लिए आश्वासन-धैर्य के कारण रूप, अनर्थो के चिन्ह से रहित सम, मनोज्ञ और शुद्ध था। नक्षत्रों नाशक होने से त्राणरूप, उद्देश्य की प्राप्ति में के स्वामी पूर्णचन्द्र के समान सौम्य मुख था । कारण होने से शरण रूप, खराब अवस्था से उत्तम मनोहर या संलग्न (ठीक ढंग से मुख के साथ अवस्था में लाने वाली गतिरूप और संसाररूपी जुड़े हुए) या प्रालीन प्रमाण से युक्त कान थे, खड्डे' में गिरते हुए प्राणियों के लिए आधार रूप अतः वे सुशोभित थे । दोनों गाल मांसल और भरे थे। चार अन्तों (तीन दिशाओं में समुद्र और हुए थे। भौंहे कुछ झुके हुए धनुष के समान (टेढ़ी) उत्तर दिशा में हिमवान् पर्वत रूप किनारे) वाली सुन्दर और काले बादल की रेखा के समान पतली पृथ्वी के मालिक; चक्रवर्ती के समान धर्म में श्रेष्ठ कालो और कान्ति से युक्त थे। नेत्र खिले हुए (अधिनायक) थे। क्योंकि वे भविसंवादक-अचूक __ सफेद कमल के समान थी। वे इस प्रकार शोभित ज्ञान के और दर्शन के धारक थे; कारण उनके थी मानों कुछ भाग में पत्तों से युक्त खिले हुए ज्ञान आदि के प्रावरण (ज्ञानादि गुणों को दबाने कमल हों। नांक गरूड़ को (चोंच के) समान वाले कर्म) हट गये थे । (अतः निश्चय ही) राग और लम्बा, सीवा और ऊंचा था। संस्कारित शिला द्वेष को जीत लिया था । ज्ञायक भाव में रागादि के प्रवाल (मूगें) और बिम्ब फल के समान स्वरूप उनके कारण और फल के ज्ञातृ भाव में स्थित अधरोष्ठ थे। थे। इसलिए मुक्त थे, मुक्त करने वाले थे, समझे हुए . उनकी ऊंचाई सात हाथ की थी। आकार थे, समझाने वाले थे। वे सर्वज्ञ-सर्वदर्शी उपद्रव से समचौरस (उचित और श्रेष्ठ माप से युक्तरहित स्वाभाविक और प्रयोग जन्य चलन से रहित- सुन्दर) था। उनकी हड्डियों की संयोजना अत्यन्त अक्षय, बाधा-पीड़ा से रहित और जहां से पुन: मजबूत थी। (प्रतः सौन्दर्य और शक्ति का आगमन नहीं हो, ऐसे 'सिद्धि गति' नाम वाले सुन्दर संयोग हुमा था)। शरीर-स्थित वायु का वेग स्थान को अभी ऐसे स्थान को प्राप्त नहीं हुए थे अनुकूल था। कंक पक्षि के समान गुदाशय या किन्तु उसे प्राप्त करने की प्रवृत्ति चालू थी। (अर्थात मलोत्सर्ग-क्रिया में कोई खराबी नहीं थी
समेल वृक्ष के फल जो कि रूई से ठोस भरा या मलोत्सर्ग स्थान के अवयव नीरोग थे), कबूतर
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