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दीक्षा-दिवस
दीर्घ तपस्वी महावीर
बिहार-भूमि धन्य है जिसने धर्म, दर्शन, संस्कृति साहित्य एवं राजनीति के क्षेत्र में युगों-युगों से विश्वमान्य अनेक महामनीषियों, क्रान्तिकारीसाधकों एवं नेताओं को जन्म दिया है। भगवान महावीर भी उन्हीं में से एक युगप्रधान महापुरुष थे, जिनके अनुपम पुरुषार्थ एवं कठोर साधना ने भारतीय समाजवाद, साम्यवाद तथा धर्म, दर्शन एवं माचार शास्त्र के इतिहास के एक विशेष प्रतिभापूर्ण अध्याय का अंकन किया और वैशाली मथवा बिहार को ही नहीं, अपितु भारत को भी महामहिम बना दिया । उन्हीं महान बिहारी भगवान महावीर के निर्वाण को इस वर्ष 2500 वर्ष पूरे हो चुके हैं, अतः उनकी उस पुण्यतिथि की स्मृति में उनका 2500वां निर्वाण समारोह राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सर्वत्र मनाया जा रहा है।
जैन-परम्परा के अनुसार भगवान महावीर तीर्थंकरों की श्रेणी में चौबीसवें एवं अन्तिम तीर्थकर हैं। प्रागम साहित्य में तीर्थकर उसे कहा गया है जो सांसारिक सुखों को क्षणिक एवं जन्म-मरण का मूल कारण जानकर वैराग्य धारण करता है मौर निरीह-वृत्ति से बारह प्रकार के अन्तर्वाह्य कठिन तप करके शाश्वत सुख-मोक्ष प्राप्त करता है। ऐसे तीर्थंकरों के सम्पूर्ण जीवन का वर्गीकरण पांच भागों में किया गया है-(1) गर्भावतरण (2) जन्म धारण (3) दीक्षा अथवा तप (4) केवल ज्ञान प्राप्ति एवं (6) मोक्ष ।
पूर्वाचार्यों के अनुसार उक्त पांचों अवस्थाएं जड़ एवं चेतन में एक विशेष माल्हादकारी एवं कल्याणकारी वातावरण उत्पन्न करती हैं मतः उक्त प्रत्येक भाग के साथ-साथ 'कल्याणक' विशेषण भी संयुक्त कर दिया जाता है । उदाहरणार्थ तीर्थ.
प्रो. डॉ. राजाराम जैन अध्यक्ष संस्कृत प्राकृत विभाग 'ह• दा• जैन कालेज, भारा (बिहार)
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