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भगवान महावीर
की
भारतीय संस्कृति में जो कुछ भी शाश्वत है, जो कुछ भी उदात्त एवं महत्वपूर्ण है, वह सब तपस्या से सम्भूत है । तपस्या के बिना प्रादर्श जीवन निरर्थक है । भगवान महावीर का तपःपूत जीवन मात्मा से परमात्मा बनने की कहानी है । पूर्वा
चार्यों के कथनानुसार भगवान किसी वाह्य कारण तपः साधना
के बिना ही विषयों से विरक्त हो गए; क्योंकि पदार्थों की स्थिति जानने वाला मुमुक्षु शान्ति प्राप्त करने के लिए सदा वाह्य कारण को नहीं देखता है। भगवान ने निर्मल अवधिज्ञान के द्वारा एक साथ अपने अतीत भवों तथा उद्दण्ड इन्द्रियों की विषयों में होने वाली अतृप्ति का इस प्रकार वितन किया कि जिससे उन्हें पूर्वभव का सब वृत्तान्त प्रकट हो गया। पद्मचरित में उन्हे स्वयंबुद्ध विशेषण से विभूषित करते हुए कहा गया है कि वे समस्त सम्पदा को बिजली के समान क्षणभङ गुर जानकर विरक्त हुए और उनके दीक्षाफल्याणक में लोका. न्तिक देवों का आगमन हुआ । अट्ठाइस वर्ष सात माह बारह दिन गृहस्थ अवस्था में बिताकर षष्ठोपवास के साथ मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी के दिन जबकि चन्द्रमा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र पर था, महावीर ने दीक्षा ली।। ईस्वी सन् के अनुसार दीक्षा की यह तिथि सोमवार 29 दिसम्बर 569 ई० पूर्व निश्चित होती है । बारह वर्ष पांच माह पन्द्रह दिन उन्होंने तप किया। भगवान महावीर
की तपः साधना बड़ी कठोर थी । जैन ग्रन्थों में -डा. रमेशचन्द्र जैन उनकी तपश्चर्या के विविध रूप मिलते हैं
वर्धमान कॉलेज बिजनौर, उ. प्र.
अचेलकत्व-दिगम्बर साहित्य के अनुसार भगवान ने दीक्षा के समय समस्त वस्त्राभूषणों का परित्याग कर नग्नावस्था में विहार किया । श्वेता.
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