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सम्पादकीय
'श्रमणविद्या' संकाय-पत्रिका 'संस्कृतवर्ष-विशेषाङ्क' ज्ञानोपायन के रूप में मनीषी विद्वज्जनों एवं सधी अध्येताओं के हाथों में समर्पित करते हुए मुझे हर्षातिरेक की अनुभूति हो रही है। विशेष आनन्द की अनुभूति इसलिए हो रही है कि इस ज्ञान-यज्ञ के सम्पादन में प्राच्यविद्या के विशेषज्ञों, विद्वानों एवं धर्मधुरीण विचारकों का सहयोग मुझे निरायास मिला है। इसमें जिन विद्वानों के शोधपरक अधिनिबन्धों का समाकलन हुआ है, वे अपने क्षेत्र के अधीति विद्वान् और सुविचारक हैं, इसमें किञ्चित् आशङ्का का कोई अवकाश नहीं है। शोध-निबन्धों के अतिरिक्त इसमें लघुग्रन्थों को भी प्रकाशित किया जा रहा है, जो सर्वथा अप्राप्य एवं दुर्लभ थे। सिंहली, बर्मी, रोमन आदि लिपियों में ये पुस्तकें उपनिबद्ध थीं; किन्तु देवनागरी लिपि में इन ग्रन्थों का कोई संस्करण उपलब्ध नहीं था, जिससे अध्येताओं एवं गवेषकों को कठिनाई का अनुभव हो रहा था। इन्हीं कठिनाइयों के अपाकरण के लिए इन ग्रन्थों को पाठ-संशोधन तथा सारभूत भूमिकाओं के साथ 'श्रमणविद्या' संकाय-पत्रिका में प्रकाशित कर पाठकों के लिए सुलभ किया जा रहा है। दुर्लभ एवं अप्रकाशित लघु-ग्रन्थों का प्रकाशन इस पत्रिका का महान् लक्ष्य रहा है।
विगत कई वर्षों में 'श्रमणविद्या' संकाय-पत्रिका अपरिहार्य कारणों से प्रकाशित नहीं हो सकी। संकाय एवं अन्य विद्वानों के सहयोग से इसका प्रकाशन किया जा रहा है, जिससे अध्येताओं एवं गवेषकों को महत्त्वपूर्ण शोध-निबन्धों तथा लघुग्रन्थों के द्वारा शोध-क्षेत्र में सहायता मिलेगी, ऐसी आशा है।
प्रस्तुत 'श्रमणविद्या' संकाय-पत्रिका में अट्ठारह शोध-निबन्ध प्रकाशित किये जा रहे हैं। 'बौद्धवाङ्मय में मङ्गल की अवधारणा' आचार्य श्री ब्रजमोहन पाण्डेय 'नलिन' द्वारा लिखित शोध-निबन्ध सम्पूर्ण पालि वाङ्मय में मङ्गल की क्या अवधारणा रही है, इस पर प्रकाश डालता है तथा आध्यात्मिक, सामाजिक एवं धार्मिक परिप्रेक्ष्य में इसकी उपयोगिता को प्रदर्शित करता है, इससे • शोधार्थियों को अत्यन्त लाभ मिल सकेगा।
'वर्तमान समय में बुद्धवचन की प्रासङ्गिकता' प्रो.विश्वनाथ बनर्जी, पूर्व अध्यक्ष, संस्कृत-पालि-प्राकृत विभाग, शान्ति निकेतन द्वारा प्रस्तुत शोध एवं
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