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________________ ३८ श्रमणविद्या-३ (१) 'खन्ति' क्षान्ति को भगवान् बुद्ध ने उत्तम मंगल कहा है। खन्ति का अर्थ है-धैर्य, तितिक्षा, सहनशीलता, सहिष्णुता। खन्ति का अर्थ है अधिवासनक्षान्ति (अधिवासनक्खन्ति) 'खन्ती खमनता अधिवासनता अचण्डिकं अनसरुपो अत्तमनता चित्तस्स'। चित्त की क्षमा शीलता, सहिष्णुता, अचण्डता, विप्रसन्नता को खन्ती (क्षान्ति) कहते हैं। अधिवासक्षान्ति से समुपेत भिक्षु दस आक्रोशवस्तुओं से आक्रोशित किये जाने पर अथवा वध-बन्धन से विहिंसित किए जाने पर भी न सुनते हुए की तरह, न देखते हुए की तरह जो सर्वथा क्षान्तिवादी की तरह निर्विकार रहता, वही सच्चे अर्थों में भिक्षु है। कहा भी हैं यो हत्थे च पादे च कण्णनासंञ्च छेदयि तस्स कुज्झ महावीर मारटुं विनस्स इदं । यो मे हत्थे च पादे च कण्णनासञ्च छेदयि चिरं जीवतु सो राजा नहि कुज्झन्ति मादिसा । अहु अतीतमद्धानं समणो खन्तिदीपनो । तं खन्तियायेव ठितं, कासिराजा अछेदयी। तस्स कम्मफरुसस्स विपाको कटुको अहु यं कासिराजा वेदेसि निरयम्हि समप्पितो ति। (जातक १११) जो क्षान्ति से समन्वित होता है वह ऋषियों द्वारा प्रशंसनीय होता है क्रोध का वध कर मनुष्य कभी शोक नहीं करता है। म्रक्षप्रहाण की प्रशंसा ऋषिगण भी करते हैं। जो लोग परुषवचन का प्रयोग करते हैं, उन सबो को क्षमा करो, क्षान्ति को सन्त लोग उत्तम कहते हैं कोधं वधित्वा न कदाचि सोचति मक्खप्पहानं इसयो वण्णयन्ति । सब्बेसं वुत्तं फरुसं खमेथ एतं खन्तिं उत्तममाहु सन्तो ।। (जातक २-९) ब्राह्मण को परिभाषित करते हुए धम्मपद में कहा गया है कि जो व्यक्ति अदुष्ट चित्त हो वध और बन्ध को सहता है, क्षमाबल ही जिसकी सेना तथा सेनापति है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ-- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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