________________
बौद्ध वाङ्मय में मङ्गल की अवधारणा
पाणातिपातो अदिन्नादानं मुसावादो पवुच्चति ।
परदारगमनञ्चेव नप्पसंसन्ति पण्डिता ।। ( दी. नि. ३ । १४० )
पाप कर्म मूलत: छन्द, द्वेष, मोह तथा भय के कारण किए जाते हैं। किन्तु आर्य जन उपर्युक्त वृत्तियों के कारण पापकर्म नहीं करते क्योंकि वे उन वृत्तियों से सर्वथा पराङ्गमुख रहते हैं। भगवान् बुद्ध ने कहा है
छन्दा दोसा भया मोहा यो धम्मं अतिवत्तति । निहीयति तस्स यसो कालपक्खेव चन्दिमा || छन्दा दोसा भया मोहा यो धम्मं नातिवत्तति ।
आपूरति तस्स यसो सुक्कपक्खेव चन्दिमा ।।
छन्द, द्वेष, मोह मूर्खता तथा भय के कारण धर्म की सीमा का जो अतिक्रमण करते है, उसका यश कालपक्ष की चन्द्रमा के समान नष्ट हो जाता है किन्तु यो धर्म का अतिक्रमण छन्द द्वेष मोह तथा भय के कारण नहीं करता है उसका यश शुक्ल पक्ष की चन्द्रमा के समान बढ़ता है।
यो पाणमतिपातेति मुसावादञ्च भासति । लोकं अदिन्नमादियति परदारञ्च गच्छति ।। सुरामेरयपानञ्च यो नरो अनुयुञ्जति । अप्पहाय पञ्च वेरानि दुस्सीलो ति वुच्चति । कायस्स भेदा दुप्पञ्ञो निरयं सोपपज्जति ।। यो पाणं नातिपातेति मुसावादं न भासति । लोके अदिन्नं नादियति परदारं न गच्छति ।। सुरामेरयपानञ्च यो नरो नानुयुञ्जति ।
पहाय पञ्च वेरानि सीलवाति पवुच्चति । कायस्स भेदा सप्पञ्ञ सुगतिं सोपपज्जति ।।
जो इस संसार में प्राणियों की हिंसा करता हैं, झूठ बोलता है, अगम्याभिगमन करता अर्थात् परदाराभिमर्शन करता है दूसरों की वस्तुओं को
१. अंगुत्तरनिकाय उपासक सुत्त २२।१७४।२२८
Jain Education International
३१
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org