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भूमिका
आचार्य नागार्जुन द्वारा विरचित 'निरौपम्यस्तव' एवं परमार्थस्तव' अत्यन्त दुर्लभ लघु ग्रन्थ हैं। इनके अंग्रेजी अनुवाद के साथ मूल संस्कृत की एक छायाप्रति हमें अनेक वर्ष पूर्व प्राप्त हुई जो सम्भवतः किसी पश्चिमी देश के ग्रन्थालय से लायी गयी हैं। मूल प्रति में कुछ अस्पष्टता एवं कुछ त्रुटियाँ पायी गयी जिन्हें तिब्बती अनुवाद के आधार पर सुधारने की चेष्टा की हैं। मैं समझता हूं कि मूल पाठ का स्वरूप काफी शुद्ध हो गया हैं। तथापि यदि भाषागत कोई त्रुटी रह गयी हो तो पुन: सुधारने की चेष्टा करूँगा।
बौद्ध दर्शन बौद्ध दर्शन केवल एक दर्शन नहीं है, अपितु दर्शनों के समूह है। किन्हीं विषयों पर विचारसाम्य होने पर भी परस्पर अत्यन्त मतभेद हैं। शब्दसाम्य होने पर भी अर्थभेद अधिक है। विभिन्न शाखाओं तथा उपशाखाओं के होने पर भी मूल दार्शनिक सिद्धान्तों के साम्य की दृष्टि से बौद्ध दर्शनों का चार भागों में वर्गीकरण किया गया है। यथा-वैभाषिक सौत्रान्तिक, योगाचार (विज्ञानवाद) एवं माध्यमिक या शून्यतावाद। वैभाषिक में सर्वास्तिवाद तथा स्थाविरवाद आदि अठारह निकाय हैं। सौत्रान्तिक में आगमानुचारि एवं युक्तत्यनुचारी दो हैं। विज्ञानवाद में भी आगामनुयायी तथा युक्त्यनुयायी दो हैं। माध्यामिकवाद में स्वातान्त्रिकमाध्यमिकवाद एवं प्रासंगिकमाध्यमिकवाद दो हैं।
इन सब दर्शनों के मूल में भगवान् बुद्ध के वे वचन हैं, जिनका उपदेश उन्होंने विभिन्न धातु, अध्याशय, और अधिमुक्ति वाले विनेयजनों के कल्याण के लिए विभिन्न स्थानों तथा विभिन्न कालों पर दिया गया। बुद्ध के समस्त वचनों
का त्रिविध धर्मचक्र प्रवर्तनों में संग्रह हो जाता है। . बुद्ध के उपदेशों का लक्ष्य लोगों को तत्त्वदर्शन कराना होता हैं। वस्तुओं
की यथार्थता के दर्शन द्वारा ही अविद्या का प्रहाण सम्भव है। अविद्या के प्रहाण से दु:खों का उन्मूल होता हैं। अत: भगवान् बुद्ध तत्त्वदर्शन द्वारा लोगों को सन्मार्ग में प्रतिष्ठित करते हैं। ऐसा नहीं कि अपने दिव्यबल या शक्ति से लोगों
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