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प्रस्तावना
मनुष्य एक चिन्तनशील प्राणी है। इसी चिन्तनशीलता के कारण उसने ज्ञान-विज्ञान के विविध क्षेत्रों में विकास के नये-नये कीर्तिमान स्थापित किये हैं। फिर भी उसकी विकास-यात्रा बिना थके अविराम चल रही है। इस विकास की आधारशिला हमारे गौरवशाली अतीत पर आधारित है। हमारे देश की प्राचीन संस्कृति, कला, साहित्य, धर्म-दर्शन और ज्ञान-विज्ञान की गौरवगाथा सदा से ही विश्वविख्यात रही है। हमारा देश का समग्र भारतीय दर्शन एक प्रमुख प्रतिष्ठापूर्ण पूँजी है, जिसके कारण भारत को विश्वगुरू के रूप में मान्यता प्राप्त थी। यही समग्र भारतीय दर्शन विविधताओं में एकता और तादात्म्य भाव समेटे हुए है। क्योंकि यह भाव ही एक धागे में गुंथी हुए उस मणिमाला के समान है, जो इस देश में जन्मी या यहाँ पली-बढ़ी विभिन्न चिन्तनधाराओं को एक सूत्र में पिरोये हुए सुशोभित हैं। हमारी इस एकता की यह विशेषता रही है कि लम्बे इतिहास में अनेक उतार-चढाव एवं परिवर्तनों के बाद भी उसे कोई मिटा नहीं सका। यही कारण भी है कि हमारे देश की धर्म-दर्शन विषयक चिन्तनधारायें और संस्कृति आज भी ज्यों त्यों जीवन्त हैं।
___ भारतीय दर्शन की एक विशेषता सदा से यह भी रही है कि भले ही वे पूर्वपक्ष और उत्तरपक्ष के रूप में एक दूसरे का खण्डन-मण्डन अपने-अपने शास्त्रों और शास्त्रार्थों में करते रहे हों, किन्तु सभी परस्पर एक-दूसरे के दर्शनों का आदरपूर्वक अध्ययन, मनन और लेखन भी करते रहे हैं। इसके प्रमाणस्वरूप हम माधवाचार्य कृत सर्वदर्शनसंग्रह, आचार्य हरिभद्रसूरीकृत ‘षड्दर्शन समुच्चय आदि प्रमुख ग्रन्थों के नाम रेखाङ्कित कर सकते हैं, जिनमें बिना किसी पूर्वाग्रह के सभी दर्शनों की मूलभूत मान्यताओं का अच्छा विवेचन किया गया है। इसी तरह के और भी अनेक ग्रन्थ हैं, जिनके अध्ययन से सभी दर्शनों को समझने और जानने में काफी सहायता मिलती है।
यह हम सभी जानते हैं कि यदि 'दर्शन' के प्रति रुचि और आकर्षण न हो तो यह विषय सामान्य लोगों को 'नीरस' सा प्रतीत होता है। इसीलिए
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