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सर्वास्तिवादी परम्परा अपने इस अभिधर्म को षड्पादाभिधर्म की संज्ञा से विभूषित करती है। इनमें से ज्ञानप्रस्थान शरीर की भाँति है और शेष छह ग्रन्थ उसके पाद-स्वरूप माने गये हैं। ये ग्रन्थ इस प्रकार हैं:
ग्रन्थकर्ता १. ज्ञानप्रस्थानशास्त्र
आर्य कात्यायन २. प्रकरणपाद
स्थविर वसुमित्र ३. विज्ञानकायपाद
स्थविर देवशर्मा या देवक्षेम ४. धर्मस्कन्धपाद
आर्य शारिपुत्र या मौद्गल्यायन ५. प्रज्ञप्तिशास्त्रपाद
आर्य मौद्गल्यायन ६. धातुकायपाद
पूर्ण या वसुमित्र ७. संगीतिपर्यायपाद
महाकौष्ठिल या शारिपुत्र इसमें एक ही ग्रन्थ के कर्ताओं के अथवा करके जो नाम दिये गये हैं, वे चीनी तथा तिब्बती परम्परा के अनुसार हैं। यद्यपि इन ग्रन्थों के कर्ताओं के नाम उल्लिखित हैं, किन्तु कश्मीर-वैभाषिकों के अनुसार ये सभी बुद्धवचन ही हैं और इनका उपदेश शास्ता ने विभिन्न समयों एवं स्थानों पर विभिन्न प्रकार के शिष्यों के लिए किया था; किन्तु वैभाषिक तथा सौत्रान्तिक इससे सहमत नहीं है। उनके अनुसार इन ग्रन्थों का प्रणयन कालक्रमानुसार भिन्नभिन्न आचार्यों द्वारा किया गया है। ई० लामोत ने अपने विशिष्ट ग्रन्थ 'हिस्ट्री
ऑफ इन्डियन बुद्धिज्म' में विस्तार-पूर्वक इसकी चर्चा की है तथा यह विषय वहीं द्रष्टव्य है।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि अभिधर्म के बुद्धवचन होने के बारे में काफी विवाद है।
सच्चसङ्केप के रचयिताः आचरिय चुल्लधम्मपाल
सच्चसङ्केप के रचयिता को सामान्यत: 'आचरिय धम्मपाल' (आचार्य धर्मपाल) के नाम से उल्लिखित किया गया है और गौरव प्रदान करने के लिए इन्हें 'पोराणा' इस बहुवचन से भी अलंकृत किया गया है, जो यह अभिव्यक्त १. ई० नामोत, हिस्ट्री ऑफ इन्डियन बुद्धिज़्म, (फ्रेन्च से आंग्ल-भाषा में अनूदित),
पृ० १८४-१९१, लोवेन-ला-नेवुए, १९८८।
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