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भोट देश में बौद्धधर्म एवं श्रमणपरम्परा
का आगमन श्री पेमा गारवङ्ग
प्राध्यापक एस. आई. एच. एन. एस.
शेडा, देवराली, गन्टोक, सिक्किम। भोट देश में सर्व प्रथम राजा आणी चेन्पो से लेकर २८ वें राजा ल्हा थोथोरी बेनचेन के पूर्व काल तक बौद्ध धर्म का कहीं उल्लेख ही नहीं था, मगर ल्हा थो थोरीजेनचेन के समय पर उन्हें कुछ सूत्र और मन्त्र के पुस्तक तथा स्वर्ण स्तूप प्राप्त हुआ, जिसका अर्थ न समझने पर भी इसे अत्यन्त गोपनीय बता कर पूजने लगे और इसका अर्थ पाँच पुश्तों के बाद समझ में आयेगा इत्यादि भविष्यवाणी के रूप में राजा ने स्वप्न में देखा। इस तरह भगवान बुद्ध के परिनिर्वाण के लगभग ७७७ वर्ष के बाद तिब्बत यानी भोट देश में सर्वप्रथम बौद्ध धर्म के आरम्भ का समय माना जाता है।
ठीक पाँच पुश्तों के बाद ३३ वें धर्म राज सोङ चेन गम्पो ने अपने राज्य सुव्यवस्थित रूप से चलाने के लिये (भाषा) लिपी का होना सब से महत्वपूर्ण जान कर अपने मन्त्रियों में से थोनमी अनु या संभोट के साथ अन्य १६सर्व श्रेष्ठ बुद्धि वाले युवाओं को स्वर्ण आदि देकर आर्य देश में अध्ययन के लिये भेजा। मगर इन सभी में से संभोट ही एक मात्र सफल होकर लौटा और वार्मन काल और गुप्त काल के समय पर उत्तर भारत में प्रचलित लिपी शारदा और नागरी के आधार पर भोट भाषा की लिपी की रचना की जिस में चार स्वर और तीस व्यजन को निर्धारित किया। व्याकरण से सम्बन्धित आठ पुस्तक भी लिखा मगर उन में अब तक प्रचलित दो को माना जाता है। एक है, स्वर और व्यञ्जन का प्रयोग तथा दूसरा लिङ्ग का भेद। इस तरह थोन्मी संभोट ने आर्य देश के आचार्य कुमार, ब्रह्मन शंकर इत्यादि के साथ कई ग्रन्थों का भोट भाषा में अनुवाद भी किया। राजा ने चीन और नेपाल के राजकुमारी से विवाह किया, वे रानियाँ अपने साथ वहाँ से बुद्ध के दो प्रतिमा भी ले
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