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कविशिक्षा का मूल्यांकन
यद्यपि नाट्यशास्त्र और काव्यशास्त्र के प्रतिपाद्यों से कविशिक्षा का प्रतिपाद्य सर्वथा भिन्न है और इस रूप में यह उन शास्त्रों का अङ्ग प्रतीत होता है पर यह सुविदित है कि किसी कार्य के होने में साध्य, साधन और इतिकर्तव्यता का ज्ञान अनिवार्य रूपेण अपेक्षित है। इनमें भी यदि इतिकर्तव्यताज्ञान न हो तो प्रवर्तना सही रूप से नहीं हो सकती है। उक्त शास्त्रों के सन्दर्भ में कविशिक्षा को भले ही अङ्ग या साधन मात्र माना जाये पर काव्यरचना तकनीक के विशिष्ट अध्ययन के कारण कविशिक्षा को स्वतंत्र शास्त्र मानना सर्वथा उपयुक्त है । यह काव्यरचनाधर्मिता का अनुशासन होने से शास्त्र कोटि में स्वीकार्य है। काव्य शास्त्र के उपपाद्यों की झटिति उपपत्ति का प्रतिपादक शास्त्र होने से इसे नाट्यशास्त्र और काव्यशास्त्र की तरह ही काव्यशास्त्रीय चिन्तन की तृतीय प्रशाखा के रूप में मान्य किया जाना सर्वथा उपयुक्त हो सकता है।
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