________________
कविशिक्षा का मूल्यांकन
११५
व्यवहारों के सूक्ष्म और गभीर अध्ययन से प्राप्त होती है तथा काव्यतत्त्वज्ञों के निर्देशों के अनुसार किये गये यत्न से 'अभ्यास' की सिद्धि होती है। संस्कृत काव्यशास्त्र के ग्रंथों में आरम्भ से ही इन सभी विषयों पर विचार प्राप्त होता हैं। अलंकारशास्त्र के ग्रंथ जहाँ एक ओर साहित्यशास्त्र के तत्त्वों का विवेचन प्रस्तुत करते हैं वहीं यह व्यावहारिक निर्देश भी देते हैं कि काव्य रचना के प्रशिक्षु को किस तरह से अभ्यास करना चाहिये, किनकिन विषयों का अध्ययन इस कार्य में सहायक हो सकता है अथवा वे कौन-कौन से प्रचलित शब्द और व्यवहार हैं जिनको काव्य-रचना में आदर दिया जाना चाहिये आदि। उदाहरण के लिये आदय काव्यशास्त्री भामह (५०० ई.) ने सर्वप्रथम व्याकरण, छन्दःशास्त्र, कोश, इतिहासाश्रित कथा, लोकव्यवहार, तर्कशास्त्र, ललितकला आदि विषयों की सूची प्रस्तुत की है जिनका ज्ञान काव्य निर्माण में अत्यन्त उपयोगी सामग्री के रूप में ग्राह्य है। आचार्य वामन (८वी शती) ने भी काव्यालङ्कारसूत्रवृत्ति में ऐसी उपयोगी सामग्रियों की सूची (कारिका१.३से१.२०तक) प्रस्तुत की है जिसमें भामह की सूची के अतिरिक्त नीतिशास्त्र, कामशास्त्र, राजनीति, लोकव्यवहार आदि का भी समावेश है। साथ ही काव्याङ्गों का विचार करते हुए उन्होंने पदों के स्थापन और विकल्प (अवापोद्वाप) आदि प्रयोग का विधान प्रशिक्षुओं के लिये ही किया है। इसी प्रकार देशविरुद्ध, कालविरुद्ध उल्लेखों से बचने का निर्देश, काव्यरचना के लिये आदर्श समय और स्थान का उल्लेख तथा विशेष अर्थदर्शन की प्रक्रिया भी इसी आवश्यकता की पूर्ति करते हैं। काव्यशास्त्र में परुष और कोमल वर्णों का निर्धारण, रीतियों की व्यवस्था आदि भी अभ्यासार्थ शिक्षापरक ही हैं। फिर भी इन तत्त्वों की चर्चा प्रासङ्गिक या गौणरूप से ही प्राप्त है। प्रारम्भिक कवियों के लिये व्यावहारिक-शिक्षापरक स्वतंत्र विचार इनमें उपलब्ध नहीं था।
राजशेखर (९००ई.) ने अपनी काव्यमीमांसामें सर्वप्रथम कवियों के लिये रचना-तकनीक की व्यावहारिकशिक्षा को स्वतन्त्र महत्त्व दिया। साहित्यशास्त्र के तात्त्विक विवेचन के साथ ही इसमें साधारण भूगोल, कवियों की प्रचलित प्रथा, ऋतुवर्णन में ध्यान देने योग्य बातें, कविगोष्ठी-वर्णन आदि विषयों की पर्याप्त पर्यालोचना की गयी। कवि के लिये उपयोगी जानकारी देने वाले विश्वकोश सा यह ग्रंथ प्रतीत होता है। फिर भी कवियों के लिये व्यावहारिकशास्त्र-शिक्षापरक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org