SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बोधिसत्त्व-अवधारणा के उदय में बौद्धत्तर प्रवृत्तियों का योगदान १०९ सकते हैं परन्तु यह भी सुस्पष्ट प्रमाण के अभाव में पूर्णतया असंदिग्ध प्रभाव नहीं कहे जा सकते। यूनानी संस्कृति एवं कला तथा बोधिसत्त्व अवधारणा ३३० इ.पू. के उपरान्त भारतके पश्चिमोत्तर प्रदेशों में यूनानी सम्राट सिकन्दर के आक्रमण हुए। सम्भवत: इस आक्रमण के कोई स्थायी प्रभाव तत्कालीन भारत पर नहीं पड़े परन्तु इन आक्रमणों के अनन्तर भी क्षेत्रों में यूनानी लोग रह गए। इनमें से अनेकों ने बौद्ध धर्म को स्वीकार भी किया। प्राचीन मुद्राएँ इस बात का समर्थन करती हैं कि मिनान्डर जैसे अनेक यूनानी शासकों ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ले ली थी। इन यूनानियों की अपनी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि थी, विशेषतः इनका कलात्मक पक्ष अधिक प्रौढ़ था जबकि धार्मिक चिन्तनों में भारतीय पक्ष अधिक सशक्त प्रतीत होता है। यूनानियों द्वारा बौद्ध धर्म स्वीकार करने से बौद्ध धर्म के चिन्तनात्मक या सैद्धान्तिक पक्ष पर सम्भवत: कोई विशेष प्रभाव पड़ता दृष्टिगत नहीं होता। किन्तु प्राचीन भारतीय पुराकथाओं एवं कल्पनाओं को बाह्य प्रभाव विशेषतः यूनानी कला ने इतना अधिक प्रभावित किया कि गन्धार शिल्प के रूप में भारतीय कला में नूतन युग का सूत्रपात ही हो गया। बौद्ध धर्म जब यूनानी पृष्ठभूमि से सुपरिचित व्यक्तियों के साथ सम्बद्ध हुआ तब एक सुनिश्चित आकार के सुनिश्चित व्यक्तियों के आराधना की प्रक्रिया क्रमश: बलवती होने लगी। प्रारम्भिक बौद्ध धर्म में बुद्ध का कलात्मक अंकन प्रतिमाओं के रूप में नही था। उनके प्रतीकात्मक अंकन ही सामान्य जन द्वारा अराध्य थे। परन्तु गान्धार शिल्प का सूत्रपात ऐसी पृष्ठभूमि का संकेत कराती है जहाँ पूजा के निमित्त एक सुनिश्चित व्यक्तित्व या आकार की आवश्यकता का अनुभव किया गया। इस पृष्ठभूमि को भारतीय जन सामान्य की मानसिक मनोवृत्ति में भी विद्यमान कहा जा सकता है परन्तु यूनानी मनोवृत्ति कुछ अधिक सुनिश्चित मूर्तिकरण की ओर झुकी हुई थी ही। अत: यूनानी प्रभाव से गन्धार शिल्प का अभ्युदय हुआ। इसने न केवल भारतीय कला में ही क्रान्तिकारी परिवर्तन उपस्थित किया अपितु एक निश्चित प्रकार के निश्चित व्यक्तित्वों के समाराधन की प्रक्रिया को अधिक से अधिक बलवती बना कर महायान बौद्ध धर्म में 'बोधिसत्त्व' जैसे आदर्श व्यक्तित्व के समुपस्थापन में भी इसका अपूर्व योगदान रहा। इस प्रसंग के उपसंहार डॉ. हरदयाल के इस कथन से सहमति व्यक्त करते हुए किया जा रहा है कि यूनानी आक्रामको आब्रजकों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy