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श्रमणविद्या- ३
जो वास्तविक अधिप्रज्ञा अर्थात् प्रतीत्यसमुत्पाद स्वरूप परमार्थ तक पहुँचने में सहायक है। इनके अध्ययन से ज्ञानवृद्धि होती है। तथा गम्भीर शून्यता की ओर साधक को अभिमुख करते हैं । परन्तु ऐसी प्रज्ञा इनका विषय नहीं है जो संसार के मूल अविद्या पर सीधा प्रहार करती है ।
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अतः प्रज्ञापारमितासूत्र तथा उन पर आधारित माध्यामिक शास्त्र ही वास्तव में अभिधर्म साहित्य है और उनमें प्रतिपादित प्रतीत्य समुत्पाद एवं निस्स्वभावता वास्तविक अभिधर्म का विषय है।
अनादिकालिको धातुः सर्वधर्म समाश्रयः ।
तस्मिन् सति गतिः सर्वा निर्वाणाधिगमोऽपिवा ।।
एक अनादिकालिक धातु है, जो समस्त धर्मों का आश्रय होती है । उसके होने पर ही सम्पूर्ण गतियाँ एवं निर्वाणप्राप्ति सम्भव है।
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