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________________ 24 29 33 24 32, 40 25 २३४ श्रमणविद्या इणमेव-यही, यह ही 56 कम्मस्सासवणिरोहणे-कर्मास्रव के इट्ठणि?अत्थेसु-इष्ट और अनिष्ट रोकने में अर्थों में कम्मादपदेसाणं-कर्म और आत्मा के इव-तरह प्रदेशों का 32 [3] कम्मासवणं-कर्मास्रव उज्जोदादवसहिया-उद्योत और कसायदो-कषाय से आतप सहित काओ-काय ___25, 26 उप्पादवयहि-उत्पाद और व्यय से 14 काया काय (शरीर) उवयोगमओ-उपयोगमय 2 कारणं-कारण उवओगा-उपयोग 44 कालविजुत्तं-काल को छोड़कर उवओगो - उपयोग 4 कालस्से गो-काल का एक उवझाओ-उपाध्याय 53 कालाणू-कालाणु उत्तं-कहा 23 कालो-काल 15, 20, 21 उवयारा-उपचार से 26 किचि-कुछ 156 उपसंहारप्पसप्पदो--संकोच और किंचूणा-कुछ कम, (किंचित् ऊन) 14 विस्तार से _10 केवलं-केवल [ए] केवलमवि-केवल भी एक्केक्का-एक-एक 22 केवलिणाहे-केवली नाथ में एक्केक्के-एक-एक पर [ख] एग-एक खयहेदू-क्षय का कारण एयत्तं-एकत्व खलु-निश्चय से एयपदेसो-एक प्रदेश 26 खु-निश्चय से एवं-इस प्रकार [ग] [ओ] गंधा--गंध ओही-अवधि ___4 गइपरिणयाण-चलते हुए, (गति [क] रूप परिणमित) कत्ता--कर्ता 28 गच्छंता-गतिशील, (जाते हुए) कट्टमायारं-आकार करके ____43 गमणसहयारी-चलने में सहायक कमसो-क्रम से 30 गहणं-ग्रहण 42, 43 कम्म-कर्म 29, 32 गुरूवएसेण-गुरु के उपदेश से 49 कम्मपुधभावो-कर्मों का अलग होना 37 गोदं-गोत्र कम्मणो-कर्मों का 37 [च] कम्मपुग्गलं-कर्मपुद्गल 36 च-और ____4, 5, 38, 49, 52 संकाय पत्रिका-२ 37 2, 27, 18 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014029
Book TitleShramanvidya Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1988
Total Pages262
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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