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श्रमणविद्या 32) बाईस-प्रकृतिक स्थान का संक्रम नियम से चौदह, दश, सात और अट्ठारह,
इन चार प्रतिग्रह स्थानों में होता है। यह बाईस-प्रकृतिक नियम से मनुष्य
गति में ही विरत, देशविरत तथा अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में होता है। 33) एकाधिक बीस-प्रकृतिक स्थान का संक्रम तेरह, नौ, सात, सत्तरह, पाँच तथा
इक्कीस प्रकृतिक छह स्थानों में होता है। ये छहों प्रतिग्रहस्थान सम्यक्त्व
से युक्त गुणस्थानों में होते हैं । 34) पूर्वोक्त स्थानों से अवशिष्ट संक्रम और प्रतिग्रह स्थान उपशमक और क्षपक
संयत के ही होते हैं । बीस-प्रकृतिक स्थान का संक्रम छह और पाँच-प्रकृतिक,
इन दो प्रतिग्रह स्थानों में जानना चाहिए । 35). उन्नीस-प्रकृतिक स्थान का संक्रम पाँच प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थान में तथा अट्ठारह
प्रकृतिक स्थान का संक्रम चार-प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानों में होता है। चौदह-प्रकृतिक स्थान का संक्रम छह-प्रकृतियों वाले प्रतिग्रहस्थान में एवं तेरह-प्रकृतिक
स्थान का संक्रम छह और पाँच-प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानों में जानना चाहिए। 36) बारह-प्रकृतिक स्थान का संक्रम पाँच और चार तथा ग्यारह प्रकृतिक स्थान
का संक्रम पाँच, चार और तीन-प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानों में होता है। दश प्रकृतिक स्थान का संक्रम पाँच और चार में एवं नौ-प्रकृतिक स्थान का
संक्रम तीन-प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थान में जानना चाहिए। 37) आठ-प्रकृतिक स्थान का संक्रम दो, तीन और चार प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानों
में होता है । सात-प्रकृतिक स्थान का संक्रम चार और तीन-प्रकृतिक प्रतिग्रह___ स्थानों में, छह प्रकृतिक स्थान का संक्रम नियम से दो प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थान
में तथा पाँच-प्रकृतिक स्थान का संक्रम तीन, दो और एक-प्रकृतिक प्रतिग्रह
स्थान में होता है। 38) चार-प्रकृतिक स्थान का संक्रम तीन और चार में, तीन-प्रकृतिक स्थान का
संक्रम तीन और एक-प्रकृतिक प्रतिग्रह स्थान में जानना चाहिए । दो-प्रकृतिक स्थान का संक्रम दो और एक प्रतिग्रह स्थानों में तथा एक-प्रकृतिक स्थान
का संक्रम एक प्रकृतिक प्रतिग्रह स्थान में समझना चाहिए। 39) प्रकृति स्थान संक्रम में आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी, दर्शनमोह क्षय एवं अक्षय
निमित्तक, चरित्र मोह के उपशामना तथा क्षपणानिमित्तक, ये छः संक्रम
स्थानों के अनुमार्गण के उपाय हैं। संकाय-पत्रिका-२
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