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श्रमणविद्या उनका समाधान करते हैं। गौतम गणधर और राजा श्रेणिक के प्रश्नोत्तर पुराण ग्रन्थों में मिलते हैं । बौद्ध परम्परा में पाली त्रिपिटक में यह प्रश्नोत्तर शैली प्राप्त होती है । इस सबसे ज्ञात होता है कि प्रश्नोत्तर शैली पर्याप्त प्राचीन काल से प्रचलित रही है। उसी में कसायपाहुड के गाथासूक्त निबद्ध हैं । यतिवृषभ ने चूणिसूक्तों में भी इस प्रणाली को अपनाया है। यतिवृषभ और वीरसेन ने प्रश्नात्मक शैली को शास्त्र की प्रामाणिकता का आधार बताया है। वीरसेन ने लिखा है कि इस पृच्छासूत्र के द्वारा चूणिकार ने अपने कर्तृत्व का निवारण किया है। इससे उन्होंने यह सूचित किया है कि उन्होंने जिस तत्त्व का प्रतिपादन किया है, वह उनकी अपनी निष्पत्ति नहीं है प्रत्युत गौतम गणधर ने भगवान् महावीर से जो प्रश्न किये और उनका जो उत्तर उन्हें प्राप्त हुआ उसे यहाँ निबद्ध किया है।
इस प्रकार कसायपाहुड की शैली प्रश्नोत्तर रूप है। वैदिक और बौद्ध प्राचीन वाङ्मय में भी यही शैली पायी जाती है । ऐतिहासिक सन्दर्भ में विचार करते समय इसका विशेष महत्त्व ज्ञात होगा। कसायपाहुड का प्रतिपाद्य विषय
___ कसायपाहुड का प्रतिपाद्य विषय जैन श्रमण परम्परा के कर्म सिद्धान्त के अन्तर्गत कषायों का विवेचन है। जयधवला टीका के अनुसार कषायपाहुड सोलह हजार पद प्रमाण था, जिसे आचार्य गुणधर ने एक सौ अस्सी गाथाओं में उपसंहृत किया । टीकाकार के अनुसार कषायपाहुड की उपलब्ध सभी दो सौ तेतीस गाथाएँ तथा चूलिका गाथायें कषायपाहुड का अंग हैं और सभी गुणधर कृत हैं। इन गाथाओं में निबद्ध प्रतिपाद्य विषय गाथाक्रम से संक्षेप में जान लेना अपेक्षित है।
प्रथम गाथा में बताया गया है कि पाँचवें पूर्व की दसमी वस्तु में पेज्जपाहुड नामक तीसरे अधिकार में यह कसायपाहुड है। इस प्रकार इस गाथा में ग्रन्थ का आधार निर्दिष्ट है।
दूसरी गाथा में कहा गया है कि इसमें पन्द्रह अधिकारों में १८० सूक्तगाथायें हैं। आगे की छह गाथाओं में अधिकारों की गाथाओं का निर्देश इस प्रकार हैपेज्जदोसविभक्ति, स्थितिविभक्ति, अनुभागविभक्ति, बंधक अर्थात् बन्ध और संक्रम, इन पाँच अर्थाधिकारों में तीन गाथायें हैं । वेदक अधिकार में चार, उपयोग में सात, चतुःस्थान में सोलह तथा व्यञ्जन नामक अधिकार में पाँच गाथायें हैं। दर्शनमोहउपशामना नामक अधिकार में पंद्रह तथा दर्शनमोहक्षपणा अधिकार में पाँच सूक्तगाथा हैं। संयमासंयमलब्धि तथा चरित्रलब्धि में एक ही गाथा है। चरित्रमोह उपशामना नामक अधिकार में आठ गाथाएँ हैं। चरित्रमोह की क्षपणा के प्रस्थापक में चार तथा संक्रमण में चार गाथाएँ हैं। अपवर्तना में तीन तथा क्षपणा की द्वादश
संकाय-पत्रिका-२
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