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पाहुड
कसा पाहुतं
'पाहुड' शब्द 'कसाय' 'पेज्ज' आदि शब्दों की तरह प्राचीन पारिभाषिक शब्द है । प्राचीन प्राकृत ग्रन्थों में इसे विस्तार से परिभाषित किया गया है । 'पाहुड' की निरुक्ति करते हुए यतिवृषभ ने लिखा है
"जम्हा पदेहि पुढं (फुटं) तम्हा पाहुडं" "
नंदि तथा अनुयोगद्वार में बारहवें अंग दिट्टिवाय के सन्दर्भ में पाहुड और पाहुडिआ का उल्लेख है । दिट्टिवाय में संख्यातपाहुड, संख्यात पाहुडपाहुड, संख्यात पाहुडिया तथा असंख्यात पाहुडपाहुडिया बताये गये हैं
" पाहुडसंखा पाहुडिआसंखा पाहुडपाहुडियासंखा वत्थुसंखा से तं दिट्टिवायसुपरिमाणसंखा" ।”
गोम्मटसार के अनुसार 'अहियार' और 'पाहुड' शब्द एकार्थक हैं । 'पाहुड' के 'अहियार' को 'पाहुडपाहुड' कहते हैं
" अहियारो पाहुडयं एयट्ठो पाहुडस्स अहियारो । पाहुडपाहुडणामं होदि त्ति जिणेहि णिद्दिट्ठ ॥ १३
'वत्थु', 'अत्याहियार' तथा 'पाहुड' बारहवें अंग 'दिट्टिवाय' के आन्तरिक वर्गीकरण हैं । शेष ग्यारह अंगों में इस प्रकार का वर्गीकरण नहीं मिलता ।
एक 'वत्थु' में बोस 'पाहुड' तथा एक पाहुड में चौबीस 'पाहुडपाहुड' बताये गये हैं । १४
'पाहुड' के सन्दर्भ में छक्खंडागम टीका का यह कथन भी विचारणीय है कि धरसेन से प्राप्त आगमज्ञान के आधार पर पुष्पदन्त ने बीस 'सुत्त' करके ( बनाकर ) जिनालित को पढ़ाये और फिर जिनपालित को भूतबलि के पास भेजा । भूतबलि ने जिन पालित के पास बीस 'सुत्त' देखे। जिनपालित से ही उन्हें ज्ञात हुआ कि पुष्पदन्त की आयु अब अधिक नहीं है ।
" तदो पुप्फयंताइरिएण जिणवालिदस्स दिक्खं दाऊण विसदि सुत्ताणि करिय पढाविय पुणो सो भूदबलिभयवंतस्स पासं पेसिदो । भूदबलिभयवदा जिणवालिदपासे दिट्ठविसदिसुत्तेण अप्पाउओ त्ति अवगय जिणवा लिदेण" । "
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११. कसा०पा० सुत्त, चुण्णिसुत्त ८६ ।
१२. नंदसुत्त, सू० १४४, अनुयोगद्वार सूत्र ४९५ ।
१३. गोम्मटसार जीवकाण्ड, गाथा ३४१ ।
१४. गोम्म० जी०, गाथा ३४३ ।
१५. छक्खा० धव टी० १।१।१ पृ० ७२ ।
संकाय पत्रिका-२
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