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________________ २४ श्रमणविद्या और नीति आदि से सम्बन्धित शाश्वतवादी एवं अपरिवर्तनशील मान्यताएं सहायक नहीं होगी। फलतः इसके लिए दर्शन की परिवर्तनवादी धारा स्वीकार करनी होगी अथवा आत्मा, ईश्वर आदि को अत्यन्त गतिशील अनित्य तत्त्वों के रूप में प्रतिपादित करना होगा, जो प्रायः असम्भव है। इस प्रकार प्रयोग-मार्ग की दिशा में गांधीदर्शन बनना अभी बाकी है। इसके दर्शन बनने के लिए गांधीजी की अनुभूतियाँ तथा प्रयोग-विधियाँ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। जिनकी ओर हमारा ध्यान आकृष्ट होना चाहिए। गांधीजी को अपने जीवन के ५० वर्षों में समय-समय पर जैसा अनुभव हुआ तदनुसार आचरण किया और तत्काल सबके समक्ष उसे अभिव्यक्त कर दिया। फलतः आगे से पीछे तक उनके बहुत से अनुभवों में और विचारों में विसंगतियाँ मिलती हैं। इन विसंगतियों से बचने के लिए उन्होंने अपने अगले अनुभवों के आधार पर पीछे की बातों को सुसंगत कर लेने का अनेकों बार सुझाव दिया है। वास्तव में उनका यह सुझाव भी उन पर पूरी तरह से लागू नहीं होता। अतः आज के विचारकों पर ही यह भार है कि गांधीजी के सम्पूर्ण उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर उनमें अनुस्यूत विचारों के बीच संवाद-सूत्र निकालें और उनकी क्रान्तिकारी दृष्टि के सारतत्त्व की रक्षा करते हुए बौद्धिक और व्यावहारिक आधार पर उसे समन्वित करें, उसे शास्त्रीयता प्रदान करें। यह भी स्पष्ट है कि शास्त्रीयता लाना गांधीजी को कभी स्वीकार नहीं था, किन्तु विचारों को जीवित रखने का और उनमें स्थायित्व लाने का दूसरा कोई व्यावहारिक मार्ग नहीं है। गांधीजी से सम्बन्धित दिशामें यदि कुछ किसी को करना है, तो उसे यह ध्यान रखना होगा कि उन्हीं के अन्य वचनों से विरोध संभावित है। इसलिए यथासम्भव की स्थिति में रहकर ही बौद्धिक ईमानदारी बरती जा सकती है। इसलिए गांधीजी के अध्येताओं का यह कर्तव्य है कि तर्क और परीक्षण के बीच ही गांधी की अहिंसा का स्वतन्त्र विवेचन करें और इस प्रकार गांधी विचारों को नयी-नयी समस्याओं के बीच उज्जीवित रखें और विकसित करें । संकाय पत्रिका-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014028
Book TitleShramanvidya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size14 MB
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