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श्रमण विद्या है। आज भी इस कठिन श्रमण धर्म का पालन करते हुए शताधिक श्रमण इस परम्परा को गौरवान्वित कर रहे हैं। वस्तुतः जैन परम्परा में साधुओं की जीवनचर्या महान् पवित्र और अद्वितीय मानी जाती हैं। विश्व के प्रायः किसी भी धर्म में साधुता का इतना उच्च आदर्श तथा बिना किसी सांसारिक सुख की आकांक्षा के, प्रतिपादित आचार का कड़ाई से पालन नहीं देखा जाता | शास्त्रोक्त आचार का पालन करने वाले श्रमणों एवं आचार्यों द्वारा रचित विशाल आध्यात्मिक साहित्य धर्म, दर्शन अध्यात्म मार्ग का प्रतिपादक तथा नीति की प्रेरणा देने वाला है।
आचारविषयक जैन वाङ्मय का विभिन्न दृष्टियों से अन्तरशास्त्रीय सन्दर्भो में तुलनात्मक अध्ययन-अनुसंधान आज के समय में अत्यन्त आवश्यक और उपयोगी हैं । इसे आश्चर्य ही कहा जायेगा कि समन्वय और तुलनात्मक अध्ययन के इस युग में भी प्रामः कुछ विद्वान् विविध विधाओं के विशाल जैन साहित्य को उपेक्षित कर देते हैं, इससे उनका अध्ययन, अनुसंधान, चिन्तन और लेखन एकाङ्गी एवं अधूरा ही रह जाता है। अब समय आ गया है कि इस विषय में दृष्टिकोण को अधिक उदार और विशाल बनाया जाये।
संकाय पत्रिका-१
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