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________________ १७६ श्रमणविचा सद्गुणों का आधार, आत्मा को दुर्गुणों से हटाकर सद्गुणों के आधीन करने वाला, आत्मा को ज्ञानादि गुणों से आवासित, अनुरंजित अथवा आच्छादित करने वाला आवश्यक कहलाता है। इसी ग्रन्थ में आवश्यक के दस नामों का उल्लेख है-आवश्यक, अवश्यकरणीय, ध्रुव, निग्रह, विशुद्धि, षडध्ययन, वर्ग, न्याय, आराधना और मार्ग ।' ___ आवश्यक कर्म निम्नलिखित छह प्रकार के बताये गये हैं जो श्रमण एवं श्रावक दोनों के लिए अनिवार्य हैं--१. समता (सामायिक)। २. स्तव (चतुर्विंशति तीर्थकर स्तव)। ३. वंदना। ४. प्रतिक्रमण। ५. प्रत्याख्यान तथा ६. व्युत्सर्ग (कायोत्सर्ग)।२ इनका विवेचन आगमों में नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव-इन छह के आलम्बन से किया जाता है। (१) समता (सामायिक) ___ श्रमणाचार के प्रसंग में समता सामायिक को ही कहा गया है। सामायिक शब्द की निरुक्ति अनेक प्रकार से की गई है जैसे-सम + आय अर्थात् समभाव का आगमन अथवा सम-रागद्वेष रहित मध्यस्थ आत्मा में, आय--उपयोग की प्रवृत्ति और समाय ही जिसका प्रयोजन है वह सामायिक कहलाता है। सर्वार्थसिद्धि के अनुसार-- 'सम-एकीभाव, आय-गमन अर्थात् एकीभाव रूप से-बाह्य परिणति से आत्मा की ओर गमन करने का नाम समय तथा समय के भाव को सामायिक कहते हैं। अनगारधर्मामृत में कहा है-समाये भवः सामायिकम् --अर्थात् सम--रागद्वेष-जनित इष्ट-अनिष्ट की कल्पना से रहित जो आय अर्थात् ज्ञान है वह समाय है उस समाय में होने वाला भाव सामायिक है। इस प्रकार ये सामायिक शब्द के निरुक्तार्थ हैं तथा समता में परिणत होना वाच्यार्थ है। मूलाचारकार के अनुसार--सम्यक्त्व, ज्ञान, संयम और तप-इनके द्वारा प्रशस्त रूप से आत्मा के साथ ऐक्य का नाम संयम तथा इसी प्रकार के भाव का नाम सामायिक है । इस प्रकार जो सर्वभूतों अर्थात् १. विशेषावश्यक भाष्य गाथा ८७०, टीका सहित. समदा थवो य वंदण पाडिक्कमणं तहेव णादव्वं । पच्चक्खाण विसग्गो करणीयावासया छप्पि ।। मूलाचार ११२२, ७।१५. ३. गोम्मटसार जीवकाण्ड, जी० प्र० टीका ३६७. ४. सर्वार्थसिद्धि ७।११. ५. अनगारधर्मामृत-१८।१९. ६. सम्मत्तणाणसंजमतवेहि जं तं पसत्थ समगमणं । समयं तु यं तु भणिदं तमेव सामाइयं जाण ।। मूलाचार ७१८. संकाय पत्रिका-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014028
Book TitleShramanvidya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size14 MB
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