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________________ प्राक्कथन बसमा टीका' के रचयिता आचार्य रत्नाकर शान्ति हैं । रत्नाकर शान्ति, शान्तिपा या शान्ति नाम से भी प्रसिद्ध हैं । खसमतन्त्र की यह बहुत सारगर्भित एवं महत्त्वपूर्ण टीका है, जिसका संस्कृत रूप मुझे नेपाल राष्ट्रीय अभिलेखालय में मिला था । इसके पूर्व यह ग्रन्थ सर्वथा अनुपलब्ध था । जहाँ तक मैं खोज सका, इस टीका का मूल ग्रन्थ वसमतन्त्र अभी भी संस्कृत में अनुपलब्ध है । खसमतन्त्र का मूल संस्कृत रूप न मिलने पर भी उसका भोट भाषा का अनुवाद उपलब्ध है । टीका का भी भोटानुवाद उपलब्ध है । आगे चलकर के मूल मिलने पर खसमतन्त्र का संस्कृत रूप प्राप्त होगा या अपभ्रंश अथवा अंशतः दोनों में, इसका अन्तिम रूप से निर्णय करना अभी कठिन है, क्योंकि मात्र इदानीं उपलब्ध भोट अनुवाद से यह निर्णय लेना कि इसका मूल संस्कृत में था या अन्य भाषा में एक कठिन कार्य है । इस स्थिति पर खसमा टीका से कुछ प्रकाश अवश्य पड़ता है । इस टीका ग्रन्थ में अपभ्रंश के ऐसे प्रतीकों को भी ग्रहण कर उनका व्याख्यान किया गया है, जिनका सन्निवेश ग्रन्थ में होना ही चाहिए । किन्तु इसके साथ ही इस संस्कृत टीका का जब उसके भोटानुवाद से पाठ मिलाया गया, तो उसमें उन अंशों का भोट- अनुवाद नहीं मिलता, जहाँ अपभ्रंश दोहों के चरण, पाद, अक्षर आदि का परिगणन किया गया है, अथवा अपभ्रंश शब्दों की अपभ्रंश व्याकरण के आधार पर व्युत्पत्ति दी गयी है । इसके आधार पर यह निर्णय लेना भी उचित नहीं होगा कि भोटानुवादक ने मूल ग्रन्थ में स्थित अपभ्रंश अंश का अनुवाद ही नहीं किया अथवा जिस प्रति का उसने अनुवाद किया, उसका मूल एकमात्र संस्कृत में या अपभ्रंश में नहीं था। क्योंकि इसके विपरीत टीकाकार ने अपभ्रंश के प्रतीकों को ग्रहण कर विषय को किंचित् मात्र नहीं छोड़ा है । यह कल्पना बहुत ही क्लिष्ट होगी कि मूल ग्रंथ दोहों में था, उसका संस्कृत छायानुवाद किया गया और पुनः उस छायानुवाद का भोट भाषा में अनुवाद हुआ । 1. 2. 3. Jain Education International Tohoku Catalogue No. 1424, Peking Ed. Vol. 51, No. 2141, P. 142-4-5. Tohoku Catalogue No. 386, Peking Ed. Vol. 3, No. 80, P. 173-102. Hajime Nakamura के Indian Buddhism पृष्ठ 341 की सूचनानुसार खसमतन्त्र का संस्कृत एवं भोट भाषा दोनों में सम्पादन G. Tucci Festschrift_weller 762. F में किया है । परन्तु यह अभी मेरे देखने में नहीं आया । For Private & Personal Use Only संकाय पत्रिका - १ www.jainelibrary.org
SR No.014028
Book TitleShramanvidya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size14 MB
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