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सब्बे तसन्ति दण्डस्स सब्बेसं जीवितं पियं । अत्तानं उपमं कत्वा न हनेय्य न घातये ।।
-धम्मपद, गाथा १३० ।
-सभी प्राणी दण्ड से आतंकित होते हैं। सभी को अपना जीवन प्रिय है । अतः सबको अपना-जैसा समझकर न किसी की हिंसा करे न आघात पहुँचाए ।
जह ते न पिअं दुक्खं जाणिय एमेव सव्वजीवाणं । सव्वायरमुवउत्तो अत्तोवम्मेण कुणसु दयं ।।
-समणसुत्तं, गाथा १५० । -जैसे तुम्हें दुःख प्रिय नहीं हैं, वैसे ही सब जीवों को दुःख प्रिय नहीं हैं । अत : सबको अपना-जैसा समझ पूर्ण आदर के साथ सब पर दया कर ।
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