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________________ तचचवियारो 164) काउस्सग्गहि ठिओ लाहालाहं च सत्तु मित्तं च । संजोयविष्पजोयं तिणकंचणचंदणं वासि ॥ 165) जो पसइ समभावं मणम्मि धरिऊण पंच णत्रयारं । वर अठपडिहारेहिं संजयं जिणसरूवं च ॥ 166 ) सिद्धसरूवं झायइ अहवा झाणुत्तमं ससंवेयं । खणमेक्कमविचलंगो उत्तमसामाइयं तस्स ॥ 167) एवं तइयं ठाणं भणियं सामाइयं समासेण । पोसह विहिं चउत्थं ठाणं एत्तो पवक्खामि ॥ 168) उत्तममज्झजहण्णं तिविहं पोसहविहाणमुदिट्ठं । सगसत्तीए मासम्मि चउस्सु पव्वेसु कायव्वं ॥ 169) सत्तमि तेरसि दिवसम्मि अतिहिजनभोयणावसाणम्मि भोत्तू भुंजणिज्जं तत्थ विकाऊ मुहसुद्धि || 170) पक्खालिऊण वयणं करचरणं नियमिऊण तत्थेव । पच्छा जिणिदभवणं गंतूण जिणं णमंसित्ता ॥ 171) गुरुपुरओ किदियम्मं वंदणपुव्वं कमेण काऊण | गुरुसक्खियमुववासं गहिऊण चउव्विहं विहिणा | 172) वायण कहाणुपेहण- सिक्खावण-चिंतणोवओगेहिं । ऊ दिवस सेसं अवराहियवंदणं किच्चा || 173) रयणिसमयम्हि ठिच्चा काउस्सग्गेण णिययसत्तीए । पडिलेहिऊण भूमि अप्पपमाणेण संथारं ॥ 174) दाऊण किंचि रत्ति सइऊण जिणालए णियघरे वा । अहवा सयलं रत्ति काऊस्सग्गेण णेऊण || 175) पच्चूसे उट्ठित्ता वंदणविहिणा जिणं णमंसित्ता | तह दव्व-भावपुज्जं जिण सुय - साहूण काऊण | २० Jain Education International For Private & Personal Use Only १८५ संकाय पत्रिका - १ www.jainelibrary.org
SR No.014028
Book TitleShramanvidya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size14 MB
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