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________________ १६० श्रमणविद्या वसुनन्दि कृत देवागमवृत्ति में समन्तभद्रकृत देवागमस्तोत्र की ११४ कारिकाओं के साथ निम्नलिखित पद्य पाया जाता है "जयति जयति क्लेशावेशप्रपञ्चहिमांशुमान् विहत विषमैकान्तध्वान्तप्रमाणनयांशुमान् । यतिपतिरजो यस्याधृष्यान्मताम्बुनिधेर्लवान् स्वमतमतयस्तीर्थ्या नाना परे समुपासते ॥" वसुनन्दि ने अन्य कारिकाओं की तरह इस पद्य पर भी वृत्ति लिखी है। अकलंक ने इस पद्य पर भाष्य नहीं लिखा । विद्यानन्द ने इस पद्य को अपनी आप्तमीमांसालंकृति में उद्धत करते हुए कहा है "अत्र शास्त्रपरिसमाप्तौ केचिदिदं मंगलवचनमनुमन्यन्ते ।" दक्षिण भारत में ताड़पत्रों पर उत्कीर्ण आप्तमीमांसा या देवागम की जितनी पाण्डुलिपियाँ उपलब्ध हैं, उन सभी में यह पद्य पाया जाता है । यह वहाँ की पाण्डुलिपियों का सर्वेक्षण करते समय मैंने स्वयं पाया। इस विवरण से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि अकलंक देव के समय तक देवागम में यह पद्य नहीं था। यह भी हो सकता है कि आप्तमीमांसा भाष्य लिखते समय अकलंक को जो प्रति उपलब्ध थी, उसमें यह पद्य नहीं था। अभी भी उत्तर भारत में कागज पर लिखी हुई देवागमस्तोत्र की जितनी पाण्डुलिपियाँ उपलब्ध हैं, उनमें यह पद्य नहीं है। विद्यानन्द के समय यह पद्य देवागम में सम्मिलित हो चुका था, इसलिए आप्तमीमांसालंकृति में उन्होंने इसका समावेश किया। इससे यह विचारणीय हो सकता है कि वसुनन्दि का समय अकलंक (विक्रम की ७वीं शती) के बाद और विद्यानन्द से पूर्व माना जाये। (४) वसुनन्दि नन्दिसंघ के आचार्य थे। नन्दिसंघ कुन्दकुन्द के मूलसंघ की एक महत्त्वपूर्ण शाखा थी। श्रवणवेलगोल के विन्ध्यगिरि नामक पर्वत पर सिद्धरवस्ती में उत्तर की ओर एक पाषाण स्तंभ पर शक सं०१३२० का विस्तृत लेख उत्कीर्ण है। इसमें भगवान महावीर से लेकर गणधर, श्रुतकेवली तथा आचार्यों की परम्परा विस्तार से दी गयी है। इसमें अर्हद्वलिद्वारा मूल संघ को देश भेद से चार संघों-सेन, १७. समन्तभद्रग्रन्थावलि, डॉ० गोकुलचन्द्र जैन द्वारा सम्पादित । १८. अष्टसहस्री पृ० २९४, निर्णयसागर प्रेस, बम्बई, सन् १९१५ । . संकाय पत्रिका-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014028
Book TitleShramanvidya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size14 MB
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