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________________ १५४ विषयवस्तु, उसकी पृष्ठभूमि और महत्त्व जिन के चरणों में नमन करके संक्षेप में गाथा में अपार श्रुतसागर में से अल्पमति तच्च वियारो की प्रथम गाथा में विघ्ननिवारक तथा वाच्छित पद के प्रदाता पार्श्व तत्त्वविचार कहने का उद्देश्य कथन है । दूसरी जीवों को वह अल्प सीखने की सलाह है, जो कार्यकारी हो । आगे की गाथाएँ विषय के अनुसार निम्नलिखित प्रकरणों में विभक्त हैं 1. वकारपयरणं । 2. धम्मपयरणं । 3. भावनापयरणं । 4. सम्मत्तपयरणं । 5. पुज्जापरणं । 6. विनयपयरणं । 7. वेयावच्चपयरणं । 8. सावयट्टाणपयरणं । 9. जीवदयापयरणं । 10. सावयविहिपयरणं । 11. दाणविहिपयरणं । श्रमपा विद्या इस प्रकार ग्यारह प्रकरणों में, जैन सिद्धान्तों की प्राचीन आगम परम्परा के अंतिम दो गाथाओं में ग्रन्थ के फल का निर्देश है । अनुसार, एक-एक विषय का प्रतिपादन किया गया है। नाम, रचयिता तथा ग्रन्थ के पढ़ने, पढ़ाने, उपदेश देने के उक्त प्रकरणों में प्रतिपादित विषय वस्तु जैन सिद्धान्त ग्रन्थों के अध्येताओं के लिए अपरिचित नहीं है । णवकार या णमोकार मन्त्र, धर्म, भावना, सम्यक्त्व, पूजा, विनय, वैयावृत्य, श्रावक के ग्यारह स्थान, जीवदया श्रावकविधि और दान ऐसे विषय हैं, जो व्यक्ति और समाज के अभ्युदय तथा निश्रेयस की सिद्धि के लिए दैनन्दिन जीवन में उपादेय हैं । सामाजिक और सांस्कृतिक विकास के लिए व्यक्तिगत साधना और सामाजिक जीवन की प्रयोगशाला में हजारों-हजार वर्षों से उक्त आदर्शो अवधारणाओं को जांचापरखा जाता रहा है । चिन्तकों साधकों और दार्शनिक मनीषियों ने जीवन और तर्क की दुधारी धार पर इन्हें अखण्ड पाया है । प्राकृत की प्राचीन आगम परम्परा से लेकर संस्कृत, अपभ्रंश और अनेक भारतीय जन भाषाओं- राजस्थानी, गुजराती, मराठी, कन्नड, तमिल आदि में इन विषयों पर विपुल मात्रा में ग्रन्थ रचना हुई । उस सब का लेखाजोखा यहाँ अभीष्ट नहीं है । यहाँ आगमों की उस प्राचीन परम्परा का संकेत करना उपयुक्त होगा, जो तच्च वियारो की पृष्ठभूमि है । आचार्य धरसेन के षट्खंडागम तथा गुणधर भट्टारक के कसायपाहुड के बाद उनकी शौरसेनी आगम परम्परा को आचार्य कुन्दकुन्द ने पाहुडों की रचना करके अत्यन्त सशक्त रूप से आगे बढ़ाया, किन्तु जैन संकाय पत्रिका - १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014028
Book TitleShramanvidya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size14 MB
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