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________________ सद्धम्मोपायम मित्तादिमत्ता सब्बे सप्पुरिसादयो । अनुमोदित्वामिमं पुत्रं पापुनन्तु सिवं पदं ॥ १ ॥ राजाराजाधिराजानो मच्चामच्चादिसाधवो । अनुमोदित्वामिमं पुत्रं साधयन्तु सिवं पदं ॥२॥ सब्बे सत्ता च भूता च हिता च अहिता च मे । अनुमोदित्वामिमं पुत्रं बोधयन्तु सिवं पदं ति ॥३॥ पत्ति दानानुमोदनायि' भवाभवे संसरन्तो याव निब्बानपत्तिया । जातिस्सरेन त्राणेन तिहेतुपटिसन्धिको ॥४॥ Jain Education International उपपन्नबुद्धे पूरेत्वा सव्वपारमी । मङ्गलविय सम्बुद्ध हुत्वा लोके अनुत्तरो ||५|| संसारे संसरन्तानं सत्तानं हितमावहं । धम्मनावाय ते नेत्वा तारयिस्सं भवण्णवा ति ||६|| इति केहि नाहि कित्तिया च महेसिना । वुट्ठानगामिनीसत्ता परिसुद्धा विपस्सना ||७|| गुब्बयोगो बाहुसच्च सभासा च आगमो । परिपच्छा अधिगमो गरुसन्निस्सयो तथा । मित्तसम्पत्ति चेवापि पटिसम्भिदपच्चया ति ॥८॥ प्रस्तुत संस्करण में टिप्पण के रूप में जो पाठ भेद दिये गये हैं, वे रिचाई मॉरिश ने ग्रन्थ के बाद दिये हैं । यहाँ उन्हें यथास्थान नियोजित करके प्रस्तुत किया गया है ।] १. पत्तिदानानुमोदनायि not in Ms. text, occurs at end of sanna. Veses 7 and 8 are not in the Ms. text, but occur at and of Sanna. Instead of these lines ms, has "सुभं अत्थु सयम्भु सं" । For Private & Personal Use Only संकाय पत्रिका - १ www.jainelibrary.org
SR No.014028
Book TitleShramanvidya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size14 MB
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