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________________ के. आर. चन्द्र ३९ * कठिण (१८.१) सन्यासियों का बाँस का बना हुआ एक पात्र (पासम. कढण - भगवती सूत्र ) कलत्त (१३५.२६) कलत्र = नितम्ब कम्मत ( १४५.१०) कर्मान्त = कारोबार, धन्धा, गिरवी रखने का धन्धा कुट्ठ ( ७७.५) कुशार्त = कुशावर्त देश गमेव (१२६.२८) गमितव्य = बीताने योग्य गहभोइय (१३०.३) ग्रहभोगिक = चन्द्रमा ० गरिहगा (१७.१४) गर्हणा = निंदा गुलुक (१३६.१९) गुलिक, गुल्म = गुच्छ • घायव्व (१२९.१४) हन्तव्य ( पासम. धाइयन्व ) ० चित्तया ( ९३.१९) चित्तता, चित्तत्व = चित्तभाव चोक्खीकर (६९.१९ ) = शुद्ध या स्वस्थ करना जन्नोइय ( १९४.६) यज्ञोपवीत जवागू (१४६.२१) यवागू = दलिया, माँड, रात्र ० झरिम (१२३.१७) (निर्झर + इम = झरना जाणुक (१७६.१६) ज्ञायक = जानने वाला णिपयणी (१९५७) निपतनी = नीचे उतरने की विद्या 1 णिसिणेह (१४०.२३) निःस्नेह = स्नेह रहित निस्संद (१९९.२२) निष्पन्द = स्थिर णीण (१९५.१९) निम्न=नीचा तक्कम (१२०.५) तत्क्रम = उसी क्रम वाला, उसका अनुकरण तवसि ( १०१.१७ ) तपस्विन् = विचारा, निस्सहाय तिहला (१८९.४ ) त्रिफला तेयस्सिया (२००३) तेजस्विता तो यह ( १२१.२० ) कमल ० धूर (१२७.१३) स्थूल = मोटा दारट्ठिअ ( १४४.१०) द्वारस्थित = द्वारपाल दाराहिगअ ( १३०.१५०) द्वाराधिकृत = द्वारपाल, द्वारसेवक दारिट्ठ (१४४.१५) द्वारे स्थ= द्वारपाल दुतिय (१३७.२० ) द्वितीय = दूसरा दुद्धवाहिय (१८२.७) दुग्धवाहिक = दूधवाला दुपिक्ख (१३०.३) दुष्प्रेक्ष्य = अदर्शनीय दु (७८.१५) द्रुत शीघ्र ०धम्मया (१२९.१९; १८४.२८) धर्मता, धर्मत्व = धर्मभाव धरणिगोयरी (१३६.४) घरणिगोचरी = मानव स्त्री artis ( १७४.१३) घातकी षंड = घातको खंड Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014027
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages304
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationSeminar & Articles
File Size18 MB
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