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वैदिक
जनविद्या एवं प्राकृत : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन वैदिक और प्राकृत भाषा में आत्मनेपद और परस्मैपद का भी भेद नहीं है ।
वैदिक और प्राकृत भाषा में वर्तमानकाल तथा भूतकाल की क्रियाओं के प्रयोग निश्चित नहीं हैं। वैदिक क्रियापद में वर्तमान के स्थान में परोक्ष का प्रयोग देखा जाता है। यथा
म्रियते-( वर्त० ) ममार (परोक्ष) वै० प्र० ३ ४-६ जबकि प्राकृत में परोक्ष के स्थान पर वर्तमान का प्रयोग देखा जाता है । यथा
प्रेच्छाचक्रे ( परोक्ष ) पेच्छइ ( वर्त० ) शृणोति ( वर्त० ) सोहीअ (परोक्ष ) हे० प्रा० ८/४/४४७
भूतकाल के प्रयोग में क्रिया रूप के पहले 'अ' का अभाव भी देखने को मिलता है। (बचर-१२३)
संस्कृत
प्राकृत मथीत्
अमथ्नात्
मथी अरुजन्
रुजी भूत्
अभूत्
भवी (५२) क्रियारूपों में एकरूपता
प्राकृत मुज्च ( अथर्व ३-११-१) चर ( अथर्व ३-१५-६ ) चर वज्च ( अ० ४-१६-२) वज्च जय ( अ० ६-९८-१) जय किर ( यजु० ५-२६-१) कर ( यजु १९-६२-१) कर
युज्ज ( यजु ५-१४.१) युज्ज (५३) वैदिक भाषा और प्राकृत के कृदंत रूपों में न्त और माण प्रत्यय की समानता है।
वैदिक
प्राकृत चरंच ( ऋ १-६-१) चरंत नमंत ( अथर्व ३-१६-६) नमंत जयंत ( अथ० ७-११८-१) जयंत राजंत (ऋ ३-२-४) राजंत
1991
रुजन् .
वैदिक
मुज्च
किर
परिसंवाद-४
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