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का संचय करता है, अत: वह उस सामग्री के आश्रयभूत आत्मरक्षा कर सकते थे। किन्तु इनके द्वारा मौत को शरीर का विनाश नहीं होने देना चाहता। फिर भी यदि गले लगाये जाने के कदम को संसार के किसी भी व्यक्ति उसके विनाश का कारण उपस्थित हो जाता है। तो वह ने आत्महत्या नहीं कहा, सभी ने बलिदान कहा है। अपने व्रतशीलादि गुणों को आघात न पहुंचाते हुए इसी प्रकार देशद्रोह के लिए तैयार न होने वाले किसी विनाश के कारण का परिहार करता है। किन्तु सैनिक या नागरिक को देश के शत्रु मार डालते हैं, शरीरविनाश के कारण का परिहार संभव न होने पर ऐसा अपने शीलभंग का विरोध करने वाली किसी स्त्री का प्रयत्न करता है, जिससे अपने गुणों का विनाश न हो। दुष्ट लोग गला घोंट देते हैं, किसी मनुष्य या पशु की ऐसा करना आत्मवध कैसे हो सकता है?" हत्या कर दी जाती है, अपना धर्म छोड़ने या बदलने
(स.सि. ७/२२) के लिए तैयार न होनेवाले को मौत के घाट उतार दिया
जाता है, तो स्वधर्म की रक्षा के लिए इन लोगों का इस आर्षवचन से स्पष्ट है कि सल्लेखना में न
मृत्यु को वरण कर लेना क्या आत्महत्या कहा जा तो मरने की इच्छा की जाती है, न मरने का प्रयत्न,
सकता है ? इसी प्रकार किसी अहिंसा-व्रतधारी मनुष्य अपितु जब उपसर्ग, दुर्भिक्ष, रोग, बुढ़ापा आदि बाह्य
को ऐसा रोग हो जाये, जो किसी प्राणी के अंगों से बनी कारण मुनि या श्रावक को मृत्यु के मुख में घसीट कर
दवा से ही दूर हो सकता हो, किन्तु वह अपने धर्म की ले जाने लगते हैं, तब शरीर को न बचा पाने की स्थिति
रक्षा के लिए उस मांसमय औषधि का सेवन न करे और में वह अपने व्रत-शील-संयम आदि धर्म की रक्षा का
रोग से उसकी मृत्यु हो जाय, तो क्या उसे आत्महत्या प्रयत्न करता है । इस प्रकार सल्लेखना में मनुष्य के पास
कहा जायेगा ? अथवा किसी शाकाहार-व्रतधारी मनुष्य करने के कारणों को स्वयं जुटाने का अवसर ही नहीं
को कोई डाकू या आतंकवादी पकड़ कर ले जाय और रहता , क्योंकि वे बाहर से ही अपने आप जुट जाते
उसे मांस-मद्य और नशीली दवाओं के सेवन पर मजबूर हैं। अपने-आप उपस्थित मृत्यु के कारणों को जब
करे, अन्यथा मार डालने की धमकी दे, तो उसका टालना असंभव हो जाता है, तभी तो सल्लेखनाव्रत
मांसादि का सेवन न कर डाकू या आतंकवादी के हाथों ग्रहण किया जाता है, अतः इसे आत्महत्या कहने कि
मर जाना क्या आत्मघात की परिभाषा में आयेगा ? लिए तो कोई कारण ही नहीं है।
अथवा कभी भयंकर अकाल पड़ने से भक्ष्य पदार्थों का धर्म और न्याय की रक्षा के लिए मृत्यु का वरण
अभाव हो जाये तथा मनुष्य ऐसे पदार्थों का भक्षण न बलिदान है, आत्महत्या नहीं
करे, जिससे उसका धर्म नष्ट होता हो या शरीर के अपंग ___यदि कहा जाय कि मृत्यु का कारण उपस्थित होने का डर हो, तब यदि वह भूख से मर जाता है, होने पर जान की रक्षा जैसे भी बने वैसे की जाय, तो क्या उसे आत्महत्या कहेंगे? दुनिया में ऐसी कोई अन्यथा जो मृत्यु होगी, वह आत्महत्या कहलायेगी, भी डिक्शनरी नहीं है, जिसमें इन्हें आत्महत्या कहा तो देश की आजादी के लिए अंग्रेजों की तोपों और गया हो, सर्वत्र इन्हें बलिदान शब्द से ही परिभाषित बन्दूकों के सामने खड़े होकर अपनी जान दे देने वाले किया गया है। शहीदों की मौत आत्महत्या कहलायेगी, बलिदान नहीं।
संसार के किसी भी धर्म या कानून में मौत से
पीसी सरदार भगतसिंह का फाँसी पर चढ़ जाना और चन्द्रशेखर डरकर प्राण बचाने के लिए देश की आजादी की लड़ाई आजाद का अंग्रेजों की पकड़ से बचने के लिए अपने से विमख हो जाने को. देशद्रोही के लिए तैयार हो जाने को गोली मार लेना भी आत्मघात की परिभाषा में को. किसी स्त्री का अपना शीलभंग स्वीकार कर लेने आयेगा, क्योंकि ये अंग्रेजों के सामने घुटने टेककर को अथवा अहिंसा-व्रतधारी या शाकाहार-धर्मावलम्बी
महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-3/60
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