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आचार्य ज्ञानसागर का सारस्वत योगदान
डॉ. शिवसागर त्रिपाठी
भारत राष्ट्र में वैदिक और श्रमण संस्कृति सतत फिर निर्धारित मानदण्डों के परिप्रेक्ष्य में अन्य पश्चिम प्रवहमान है। भगवान ऋषभदेव से लेकर भगवान में ग्रीक, लैटिन आदि भाषाओं में इलियड, ओडिसी, महावीर तक २४ तीर्थंकरों की प्रेरणा से ओत-प्रोत टूनीड आदि महाकाव्य लिखे गए, पर आज वहाँ यह श्रमण संस्कृति के इतिहास में सुदीर्घ मुनि परम्परा रही परम्परा लुप्तप्राय है। भारत में आज भी प्रत्येक भाषा है, जिसने अपनी आचारचर्या और तपश्चर्या से भक्तजन में महाकाव्य लिखे जा रहे हैं। संस्कृत में तो सर्वाधिक का पथप्रदर्शन किया है। इनमें कतिपय सारस्वत-साधना महाकाव्य लिखे गए हैं। विवेच्य महाकवि ने उक्त ५ को भी प्रश्रय दिया। इनमें आचार्य ज्ञानसागर (मूलतः महाकाव्य लिखकर जैन साहित्य में चौदहवीं शताब्दी पं. भूरामल शास्त्री , पं. चैनसुखदासजी न्यायतीर्थ के के बाद भी विच्छिन्न शृंखला को जोड़ा है। सहपाठी थे) अन्यतम हैं जिनका साहित्य, धर्म, दर्शन ३. कालिदास, भारवि, माघ, श्रीहर्ष आदि आदि क्षेत्रों में अक्षुण्ण अवदान चिरस्मणीय रहेगा। कवि परम्परा में उपेक्षित अवश्य रहे हैं, पर निश्चय ही यहाँ कतिपय बिन्दु प्रस्तुत हैं -
आपने नैषध के बाद अवरुद्ध काव्यधारा को प्रवाहित १. आप द्वारा लिखित ३० पुस्तकों का एक करके संस्कृत साहित्य भण्डार की अभिवृद्धि की है। विशाल रचना-सन्दोह है, जिसमें ५ महाकाव्य
४. अकेला ‘जयोदय महाकाव्य' ही आचार्यवर (जयोदय, वीरोदय, सुदर्शनोदय , भद्रोदय,
की प्रतिभा का उत्कृष्ट निदर्शन है। इसमें उपमाद्यलंकार, समुद्रदत्तचरित, वीरशर्माभ्युदय, अप्रकाशित -
छटा, अन्त्यानुप्रास पर साधिकारता-वैशिष्ट्य, अनुपलब्ध) और एक चम्पूकाव्य (दयोदय) सहित
अर्थगौरव, पदलालित्य, प्रखर पाण्डित्य और स्वारस्य ११ संस्कृत रचनाएँ (मुनिमनोरंजनाशीति,
एकत्र द्रष्टव्य है। अत: इसे बृहत्त्रयी (किरातार्जुनीय, हितसम्पादक, भक्तिसंग्रह, प्रवचनसार, सम्यक्त्वसार
शिशुपालवध, नैषधीय चरित) के साथ मिलकर शतक) १० हिन्दी रचानाएँ ऋषभचरित्र, गुणसुन्दर वृतान्त, भाग्य- परीक्षा, पवित्र मानव जीवन, सरल
बृहच्चतुष्टयी के अन्तर्गत रखने का साहस किया गया है। जैन विवाह विधि, कर्तव्य पथ प्रदर्शन, इतिहास के
५. आचार्य श्री जैन अनुशासन के अप्रतिम पन्नें, सचित्त विवेचन, सचित्त विचार, स्वामी कुन्दकुन्द विद्वान हैं, अत: उनकी रचनाओं की कथावस्तु के स्रोत
और सनातन जैन धर्म, ऋषि कैसा होता है। टीकादि वैदिक साहित्य या सनातन पुरणादि नहीं, अपितु आगम ग्रन्थ (प्रवचनसार, समयसार, तत्वार्थ-दीपिका, ग्रन्थ, जैन ढांचे में ढले जैन पुराणादि और कथाकोश नियमसार, अष्टपाहुड, मानवधर्म-शान्तिनाथ पूजन आदि हैं। विधान, विवेकोदय देवागम स्तोत्र) हैं।
६. इसी प्रकार रचनाओं में पात्रानुशीलन एवं २. संस्कृत में महाकाव्य लेखन की एक परम्परा चारित्र्यचर्या अपने ढंग की है। इनके चरित नायक रही है। पहले रामायण और महाभारत वीरकाव्य और देवी-देवता या ऋषि नहीं, संयमी महापुरुष या दैगम्बरी
महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-3/49
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