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क्षु.जिनेन्द्र वर्णी एक सिमटा-सा विराट व्यक्तित्व
- प्रो.(डॉ.) सुदर्शन लाल जैन, वाराणसी
अत्यन्त क्षीणकाय, अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी, मौन शब्द सुनकर आपके धार्मिक विचारों ने अंगड़ाई लेना साधक, दृढ़ संकल्पी, एकान्तप्रिय, अध्यात्मयोगी, आरम्भ कर दी। फलतः शास्त्र स्वाध्याय आपके जीवन अपरिग्रही क्षुल्लक जिनेन्द्र वर्णी का जन्म अक्टूबर सन् का अभिन्न अंग बन गया। शास्त्र-स्वाध्याय का ही फल १४ मई २२ में पानीपत (हरियाणा) में हुआ था। है कि आपके द्वारा निम्न अमूल्य ग्रन्थों का प्रणयन हो
आपके पिता श्री जय भगवानजी एक ख्यातिप्राप्त वकील सका। तथा जैन सिद्धान्तों के मर्मज्ञ थे।
रचनाएँ - आपका शरीर बचपन से ही दुर्बल और अस्वस्थ १. शान्तिपथप्रदर्शक (१९६०) आध्यात्मिक रहा है। टायफाइट ज्वर ने कई बार बचपन में आक्रमण प्रवचनों का संग्रह । इसमें जैनधर्म और दर्शन का सांगोपांग किया। श्वास का रोग पिताजी से विरासत में मिला। विवेचन है। अनेक संस्करण प्रकाशित हुए हैं। सन् १९३८ में क्षयरोग के कारण आपका एक फेफड़ा
२. श्रद्धा-बिन्दु (१९६१) इसमें ऋषियों के हमेशा के लिए बन्द कर दिया गया। डॉक्टरों ने मांसाहार ।
द्वारा प्रदर्शित विधि-विधानों को अन्धरूढी मानने वालों और अण्डे का प्रयोग करने की सलाह दी, परन्तु जीवन ।
की दृष्टि का परिमार्जन है। के मूल्य पर इस सलाह को आपने स्वीकार नहीं किया। आपने कांड-लीवर आयल तथा लीवर-एक्सट्रेक्ट
३. नयदर्पण (१९६५) जैन न्याय विषयक इन्जेक्शन भी लेना स्वीकार नहीं किया। इस भय से कि प्रवचनों का संग्रह । इसमें सप्तभंगी आदि जटिल सिद्धान्तों कहीं कोई कदाचित् दवा में कुछ मिलाकर न खिला का सरल भाषा में सांगोपांग विवेचन है। देवे। आपने अस्पताल की औषधि का भी त्याग कर ४. कुन्दकुन्द दर्शन (१९६६) कुन्दकुन्दाचार्य दिया। आपकी दृढ़ संकल्प-शक्ति का प्रभाव है कि के तीन सूत्रों दसणमूलो धम्मो, वत्थु-सहावो धम्मो भयंकर से भयंकर झटकों के बावजूद भी आपका जर्जर तथा चरित्तं खलु धम्मो का सयुक्तिक एवं समन्वयात्मक शरीर नष्ट नहीं हुआ।
विवेचन है, जो वेदान्त दर्शन से समानता रखता है। धर्म के प्रति काव - बचपन में आपकी ५. कर्मसिद्धान्त कोश (१९६८) कर्म-सिद्धान्त रुचि धार्मिक कार्यों में नहीं थी, आप न तो मन्दिर जाते का सार इसमें वर्णित है। थे और न शास्त्रादि पढ़ते-सुनते थे। एक बार सन् ६. जैनेन्द्रसिद्धान्त कोश (१९७०) अपूर्व कोश १९४९ में पूर्यषण पर्व के दिन मूसलाधार वर्षा हुई। घर ग्रन्थ है, जो चार भागों में ज्ञानपीठ से प्रकाशित है। के सभी लोग मन्दिर गए थे। आप काफी देर तक रोते इसमें वर्णीजी के व्यापक वैदुष्य का पता चलता है। रहे, फिर पानी में भीगते हुए मन्दिर गए तथा वहाँ गीले
७. सत्यदर्शन (१९७२) दश दर्शनों का वस्त्रों में ही बैठकर शास्त्र सुनने लगे। अह ब्रह्मास्मि समन्वयात्मक परिचय ।
महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-3/24
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