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________________ सुख नालजी कर्म की भूमिका में लिखते हैं कि (रागादिभाव) नहीं है तो ऊपर की कोई भी क्रिया साधारण लोग यह समझ बैठते हैं कि अमुक काम प्रात्मा को बन्धन में रखने में समर्थ नहीं है। नहीं करने से अपने को पुण्य पाप का लेप नहीं इससे उल्टा यदि कषाय का वेग भीतर वर्तमान लगेगा । इससे वे काम को छोड़ देते हैं पर बहुधा है तो ऊपर से हजार यत्न करने पर भी कोई अपने उनकी मानसिक क्रिया नहीं छूट ती। इससे वे को बन्धन से छुड़ा नहीं सकता।-इसी से यह इच्छा रहने पर भी पुण्य पाप के लेप (बन्ध) से कहा जाता है कि प्रासक्ति छोड़कर जो काम अपने को मुक्त नहीं कर सकते ।-- यदि कषाय किया जाता है वह बन्धक नहीं होता है। 1. अभिधान राजेन्द्र खण्ड 5 पृ० 876 2. बोल संग्रह, भाग 3, पृ० 182 3. बौद्ध दर्शन और अन्य भारतीय दर्शन पृ० 480 4. अभिधम्मत्थसंगहो, पृ० 19-20 5. मनुस्मृति 12/5-7 6. तत्वार्थ०, पृ० 6/ 4 7. योगशास्त्र 4/107 8. स्थानांग टी. 1/11-12 9-10. जैनधर्म, पृ० 84 11. भगवती 7/10/12 12. स्थानांग 9, 13. अभिधम्मत्थ संगहो (चैतसिक विभाग) 14. गीता 18/17 15. धम्मपद 249 16. सूत्रकृतांग 2/6/27-42 17. जैन धर्म, पृ० 160 18. दर्शन और चिन्तन खण्ड 2, पृ० 226 19. सूत्रकृतांग 2/6/27-42 20. सूत्रकृतांग 1/1/24-27-29 21. देखिये 18 पाप स्थान प्रतिक्रमणसूत्र 22. अनुयोगद्वार सूत्र 129 23. दशवै० 4/9 24. सूत्रकृतॉग 2/2/4/पृ० 104 25. दशवै० 6/11 26. सूत्रनिपात 37/27 27. धम्मपद 129-131-132 28. गीता 6/32 29. म०मा० शा० 258/21 30-31. म०भा०अनु० 113/6-10 32. म०भा० सुभाषित संग्रह से उद्धृत 33. नीति सर्व पृ० 268 से उद्धृत 34. उत्तरा० 28/14 35. तत्वार्थ० 1/4 36. इसि० 9/2 37. समयसार 145-146 38. प्रवचनसार टीका 1/72 39. समयसार टीका पृ० 20740. सूत्तनिपात 32/11 41. सूत्तनिपात 32/38. 42. गीता 9/28 43. गीता 2/50 44. गीता 12/16 45. भगवत् गीता (रा०) पृ० 5646. गीता 7/28 47. इथिकल स्टडीज, पृ० 314 48. इथिकल ज स्टीडीज, पृ० 342 49. गीता 4/16 50. सूत्रकृतांग 1/8/22-24 51. गीता 4/16 52. सूत्रकृतांग 1/8/1-2 53. सूत्रकृतांग 1/8/3 54. प्राचाराग 7.4/2, 1 55. डेवलपमेन्ट आफ मारल फिलासफी इन इंडिया, पृ० 168-174 56. गीता 27/19 57. गीता 18/17 58. गीता 3/10 59. गीता 3/6 60. गीता 18/17 61. गीता 4 18 62. इष्टोपदेश 41 63. पुरुषार्थ 45 64, उत्तरा 32 99 65. गीता 4/20 66. आचारांग 1/3/2/4, 1/3/1/110 देखिए प्राचारांग (संतबाल) परिशिष्ठ पृ० 36-37 67. गीता 5/7, 5/12 68. सूत्रकृतांग 1/8/22-23 69. गीत रहस्य 4/16 (टिप्पणी) 70. सूत्रकृतांग 2-2/12 71. गीता (शां०) 4/51 72. गीता भाष्य 73. गीता रहस्य पृ० 68474. पीछे देखिए-नैतिक निर्याय का विषय, पृ० 75. कर्मग्रन्थ-प्रथम भाग भूमिका, पृ० 25-26 महावीर जयन्ती स्मारिका 78 1-41 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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