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गुण दो प्रकार के होते हैं। एक सामान्य जो सब में समान रूप से मिलते हैं। दसरे विशेष जिनसे एक की दूसरे से विशेषता ज्ञात होती है, पहचान होती है, उसकी परख होती है। व्यक्ति की विशेषता उसे दूसरे व्यक्तियों से पृथक् पहचनवाती है। प्रस्तुत लेख में भ. महावीर के व्यक्तित्व को शास्त्रीय, प्रायुर्वेदीय, मनोविज्ञान आदि विभिन्न दृष्टिकोणों से जांचा परखा गया है और लेखक इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि महावीर के व्यक्तित्व का वर्णन शब्दों द्वारा करना सम्भव नहीं है और उसकी दृष्टि में उसकी यह असफलता में ही महावीर के व्यक्तित्वमापन की सफलता अन्तनिहित है।
-पोल्याका
महावीर-व्यक्तित्व-मापन
ॐ श्री लक्ष्मीचन्द्र ‘सरोज' एम ए.
बजाज खाना, जावरा (म. प्र.) यद्यपि व्यक्तित्व के अर्थ और स्वरूप के सम्बन्ध
(1) सतोगुण (सत्व) में विद्वानों ने काफी ऊहापोह किया परन्तु उसकी (2) रजोगुण (रजस्) सर्वमान्य परिभाषा अभी भी स्वीकृत नहीं हुई है। (3) तमोगुण (तमस्) जनसाधारण व्यक्ति को वह प्रभावीशक्ति मानते हैं,
जब तीनों गुण रामान परिमारण में रहते हैं जा दूसरा क हृदय जातता है, उसका विश्वास प्राप्त तब प्रकृति .अपनी सुप्त अवस्था में होती है पर करती है, उन्हें प्रभावित करती है ।।
साम्यावस्था भंग होते ही प्रकृति जागृतावस्था में व्यक्तित्व शब्द व्यक्ति से बना है। विचार के पाती है। सामान्यतया तो प्रत्येक पदार्थ और व्यक्ति इस बिन्दु से व्यक्तित्व से तात्पर्य उन गुणों से है, में ये तीनों गुण पाये जाते हैं पर जिस अनुपात में ये जिनके आधार पर व्यक्ति-व्यक्ति में अन्तर लेखा जा गुण जिस व्यक्ति में जैसे होंगे, उनके अनुरूप ही सकता है। यह अन्तर व्यक्ति के प्रान्तरिक और उसके व्यक्तित्व का निर्माण होगा। बाह्य व्यावहारिक गुणों पर अाधारित होता है ।
भगवद् गीता के 14वें अध्याय में भी सत्व हां तो व्यक्तित्व-व्यक्ति का गुण, उसकी भाववाचक
रजस् और तमस् के आधार पर मनुष्य का व्यक्तित्व संज्ञा है।
बनने की बात कही गई है। कपिल के सतोगुणी कपिल मुनि ने सांख्य शास्त्र में व्यक्तित्व के जिन व्यक्तियों में सत्व या रजोगुण की अधिसूचक तीन गुण माने हैं:--
कता मानी गई है, उनमें सौम्य और शान्ति विराज
महावीर जयन्ती स्मारिका 78 Jain Education International
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